बात सन 1955 की है.भारतीय सिनेमा के मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही साहब अपनी पत्नी मशहूर फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी के साथ दक्षिण भारत में जीवन बिता रहे थे। वहीं उन्हें एक ख्याल आया कि जैसे शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज के लिए ताजमहल बनाया था, वैसे ही उन्हें भी अपनी मुहब्बत मीना कुमारी के लिए कुछ करना चाहिए। इसी सोच में उन्होंने फैसला किया कि वह मीना कुमारी को लेकर भारत की सबसे शानदार फिल्म बनाएंगे। कमाल अमरोही साहब चाहते थे कि इस फिल्म से मीना कुमारी बतौर एक महान अभिनेत्री भारतीय सिनेमा जगत में स्थापित हो जाएं।
बहरहाल कमाल अमरोही साहब ने मीना कुमारी को अपने मन की बात बताई और दोनों ने मिलकर सन 1958 में फिल्म का काम शुरू किया।कमाल अमरोही साहब ने जब फिल्म की स्क्रिप्ट लिखकर पूरी कर ली तो अपने साथ फिल्म के गीत लिखने के लिए मशहूर शायर कैफी आजमी, मजरूह सुल्तानपुरी, कैफ भोपाली को बुलाया। इसके बाद उन्होंने फिल्म का संगीत देने के लिए संगीतकार गुलाम मोहम्मद साहब को साइन किया।
फिल्म का नाम रखा गया "पाकीजा"
इसके बाद बारी आई फ़िल्म के किरदारों की कास्टिंग की। फिल्म का मुख्य किरदार साहिबजान का था जिसे मीना कुमारी निभा रही थी। कमाल अमरोही साहब ने सलीम जो कि एक बिजनेसमैन का रोल था, उसके लिए अभिनेता अशोक कुमार को साइन किया।
जब फिल्म की शूटिंग शुरू हुई तो यह तय किया गया कि फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट फॉर्मेट में बनेगी। मगर फिल्म की शूटिंग के शुरू होने के कुछ समय बाद भारत में रंगीन फिल्मों का दौर आ गया था। इसको देखते हुए कमाल अमरोही साहब ने फिल्म को रंगीन प्रिंट में फिर से शूट करने का फैसला किया। अभी रंगीन प्रिंट में शूटिंग शुरू हुई थी कि सिनेमास्कोप लेंस की तकनीक भारत में आ गई। कमाल अमरोही साहब ने सिनेमास्कोप लेंस रॉयलिटी बेसिस पर लेकर शूटिंग शुरू की। इसी दौरान सिनेमास्कोप लेंस से शूटिंग करते वक्त कुछ तकनीकी दिक्कतें पेश आने लगीं। जब सिनेमास्कोप लेंस निर्माता कंपनी को यह बात बताई गयी तो तो उन्होंने खेद जताते हुए फौरन लेंस को ठीक करके दिया। साथ ही, लेंस निर्माता कंपनी ने यह तय किया कि वह कमाल अमरोही साहब से लेंस की रॉयलिटी मनी नहीं लेगी और उन्हें यह लेंस एक उपहार के रूप में दे देगी।