1993 में जब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में विधान सभा गठित की गई तब यहां भाजपा का दबदबा माना जाता था। मदन लाल खुराना के नेतृत्व में भाजपा ने यहां हुए विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की थी। लेकिन हवाला कांड में मदन लाल खुराना का नाम सामने आने के बाद साहिब सिंह वर्मा को दिल्ली की कमान सौंपी गई। साहिब सिंह वर्मा के सत्ता में आने के बाद भाजपा आलाकमान को यह लग रहा था कि पार्टी की लोकप्रियता कम हो रही है। इसके अलावा भाजपा की आंतरिक गुटबाजी साहिब सिंह वर्मा के खिलाफ जा रही थी। 1998 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया। बढ़ती महंगाई, खासकर के प्याज के दाम भाजपा सरकार को दिल्ली में ले डूबा और शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रही। शीला दीक्षित यहां लगातार तीन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर 15 साल तक सत्ता में रहीं। 2013 में भाजपा के लिए सत्ता वापसी की संभावना बनी थी पर वह बहुमत से दूर रह गई। आंदोलन से निकली हुई आम आदमी पार्टी भाजपा के अरमानों पर पानी फेर गई। 2015 में हुए चुनाव में भाजपा बुरे तरीके से परास्त हुई और 70 सीटों वाली विधानसभा में आम आदमी पार्टी 67 सीटें जीतकर एक बड़ा फेरबदल कर दिया। आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल दिल्ली के नए मुख्यमंत्री बने। 2020 के फरवरी में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने हैं। सभी पार्टियां अपने-अपने जीत के दावे अभी से ही करने लगी हैं। इन सब के बीच इस बात को लेकर चर्चा है कि दिल्ली में किस पार्टी का कौन चेहरा होगा? आम आदमी पार्टी केजरीवाल के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ना पसंद करेगी वहीं कांग्रेस अजय माकन या फिर शीला दीक्षित को लेकर आगे बढ़ सकती है। सबसे ज्यादा दिलचस्पी इस बात को लेकर है कि भाजपा का चेहरा कौन होगा? क्या भाजपा बिना चेहरे के ही चुनावी मैदान में उतरेगी क्योंकि इस से पहले हुए 2013 और 2015 के चुनाव में पार्टी ने अपना चेहरा तो दिया था पर कुछ खास कामयाबी नहीं मिल पाई। 2015 में तो पार्टी ने केजरीवाल टीम की प्रमुख सदस्य रहीं पूर्व IPS किरण बेदी को ही अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया था पर वह खुद चुनाव हार गईं। दिलचस्प बात यह भी है कि पार्टी की यह हार ऐसे समय में हुई जब पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी। लोकसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज करने के बाद भाजपा कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल कर चुकी थी। फिलहाल भाजपा के लिए दिल्ली में सत्ता वापसी सबसे बड़ी चुनौती है और यद दिक्कत इसलिए और भी ज्यादा है क्योंकि दिल्ली में भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं। कई चेहरे सामने उभर कर आते तो हैं पर उनकी पकड़ एक खास क्षेत्र के दायरे में ही सीमित है। इसके अलावा भाजपा की एक और दिक्कत है और वह यह है कि यहां उसके नेताओं के बीच आंतरिक कलह ज्यादा है। खैर, 2020 में चुनाव होने हैं और ऐसे में भाजपा एक चेहरे की तलाश में जुट गई है। सबसे ज्यादा जो नाम सामने आ रहे हैं उनमे मनोज तिवारी, गौतम गंभीर और प्रवेश वर्मा का नाम शामिल हैं। हां, विजय गोयल, विरेंज्द्र गुप्ता और हर्षवर्धन का भी नाम चर्चा में है पर इनकी संभावनाएं बेहद ही कम हैं। विजय गोयल काफी समय से पार्टी में सक्रिय हैं और पूर्व में मंत्री रहे है पर इन्हें मोदी-शाह का विश्वासी नहीं माना जाता। विजेंद्र गुप्ता की पकड़ आलाकमान तक नहीं है और हर्षवर्धन केंद्रीय मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अगर भाजपा प्रवेश वर्मा को आगे करती है तो उस पर विपक्ष वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगा सकता है। वंशवाद की राजनीति का विरोध अभी भाजपा की सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार है। मनोज तिवारी और गौतम गंभीर, ये दो नाम ऐसे हैं जिन पर सभी की निगाहें है। मनोज तिवारी दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और सांसद हैं। इनके नेतृत्व में भाजपा ने नगर निगम चुनाव और लोकसभा 2019 के चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर चुकी है। वह मोदी-शाह के विश्वसनीय भी माने जाते हैं। यह पूर्वांचल से आते हैं और दिल्ली में पूर्वांचलियों की संख्या अच्छी खासी है। पर यहीं चीज इनके खिलाफ भी जाती है। उन पर बाहरी होने का आरोप लग सकता है और दिल्ली के मूल निवासियों को भी इनके नाम पर आपत्ति हो सकती है। बात गौतम गंभीर की करते हैं। हाल ही में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद गंभीर भाजपा में शामिल हो गए। पार्टी ने उन्हे उत्तर-पूर्वी दिल्ली से टिकट दिया और वह जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2007 और 2011 में विश्व विजेता टीम के हिस्सा रहे गंभीर राष्ट्रवाद को लेकर मुखर हैं जो भाजपा के एजेंडे को सूट करता है। मूल रूप से पंजाबी पृष्ठभूमि से आने वाले गंभीर दिल्ली में ही पले-बढ़े हैं और एक प्रसिद्ध चेहरा हैं जिन पर सबकी सहमति बन सकती है। गंभीर वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सीधी चुनौती देते रहते हैं और लगातार जनसमस्याओं को उठाते रहते हैं। कई समाजिक कार्यों में अपना योगदान देने के साथ-साथ गंभीर चुनाव जीतने के बाद अपने क्षेत्र में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। गंभीर की मोदी और शाह से काफी नजदीकी बताई जाती है। इसके अलावा वह अरुण जेटली के सबसे ज्यादा करीबी हैं। ऐसे में गंभीर अगले चुनाव में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हों तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना ताहिए।
भाजपा का फॉर्मूला तैयार, दिल्ली में केजरीवाल को मिलेगी 'गंभीर' चुनौती