देहात में एक कहावत है 'जात भी गवाई और भात भी ना मिला'। कहने का मतलब यह है कि सब कुछ गवाने के बाद भी कुछ हासिल ना होना और शायद इसी बात की अनुभूति उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कर रहे होंगे। 23 मई 2019 से पहले तरह-तरह के दांवे करने वाले अखिलेश अपनी चुनावी हार पर चुप्पी साधे हुए हैं और उनकी सहयोगी रहीं बसपा प्रमुख मायावती उन पर हमलावर हैं। उत्तर प्रदेश में जब बुआ-बबुआ की जो़ड़ी बनी थी तब राजनीतिक पंडित यह दावा करने लगे थे कि यह जो़ड़ी कम से कम 50 सीट जीतने में कामयाब होगी। पर ऐसा हुआ नहीं। सपा-बसपा महज 15 सीट जीतने में ही कामयाब रहीं। हालांकि यह किसी ने नहीं सोचा था कि गठबंधन परिणाम आने के कुछ दिन बात ही खत्म हो जाएगा। इसकी शुरूआत मायावती ने ही कर दी। सबसे पहले तो उन्होंने उपचुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया और उसके बाद धीरे-धीरे अखिलेश और उनकी पार्टी पर हमले करने लगीं।
रिश्ते को नहीं सत्ता को महत्व देती हैं मायावती, अखिलेश यही बात समझ नहीं पाये