पूरे देश में सरे दिन दीवाली मन गई वो भी जुलाई के महीने में। नरेंद्र मोदी गदगद हैं, अमित शाह गदगद हैं और गदगद हैं देश की साढ़े पांच करोड़ मुस्लिम महिलाएं। तीन तलाक बिल को लेकर समझ तो सभी रहे थे कि अपना काम तो हो जाएगा। कांग्रेस को संख्या बल के आधार पर लग रहा था, वामपंथी दलों को भी लग रहा था, जेडीयू, टीडीपी, एआईएडीएमके को भी वाक आउट करते समय लग रहा था। ममता और मायावती को भी थोड़ा-थोड़ा लग रहा था कि अपना तो हो जाएगा और बात बन जाएगी। होना क्या होता है ये मोदी ने करके दिखाया। जब कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद तीन तलाक बिल पर जवाब देने उठे तो उसी वक्त उनके आत्मविश्वास और हावभाव से प्रतीत हो रहा था कि मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने वाले बिल को पास कराने के प्रति मोदी सरकार कितनी आश्वस्त है। कानून मंत्री ने खुद को मोदी सरकार का कानून मंत्री बताते हुए पूर्ववर्ती राजीव गांधी सरकार को भी निशाने पर लिया। राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद राजनीति के बदलते हुए मौहाल में मोदी सरकार ने अपने बुलंद इरादे के साथ इस बिल को पास कराया। तीन तलाक बोलकर कोई भी मुसलमान अब अपनी बीबी-बच्चों की जिम्मेदारी से बरी नहीं हो सकता है। सरकार ने अल्पमत में होने के बावजूद भी राज्यसभा से इस ऐतिहासिक बिल को पास करा दिया। सरकार के फ्लोर मैनेजमेंट की वजह से बिखरे हुए विपक्ष ने अपने हथियार डाल दिए। पीएम मोदी जानते थे कि ये रास्ता आसान नहीं है लेकिन उन्हें ये करना था और जरूर करना था। सारी बहस खत्म, सारे ऐतराज ध्वस्त, सारी शंकाएं निर्मूह। मोदी ने ऐसा मंत्र मारा कि राज्यसभा में विपक्ष की सारी ताकत धरी रह गई और तीन तलाक नाम की कुप्रथा का अंत हो गया। भाजपा के सदन प्रबंधन के सामने बहुमत के बावजूद विपक्ष ताश के पत्ते की तरह धराशायी हो गया। तीन तलाक बिल का विरोध करने वाली कांग्रेस समान सोच वाले दलों को भी अपने साथ जोड़ने में बुरी तरह से नाकाम साबित हुई। यहां तक कि बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का प्रस्ताव भी 100 के मुकाबले 84 वोटों से गिर गया। कांग्रेस के पास ऐसा कोई रणनीतिकार ही नहीं था जो भाजपा से विरोध के बावजूद इन्हें बिल के विरोध के लिए तैयार कर सके। नतीजा ये हुआ कि सरकार ने बहुत आसानी से राज्यसभा में बिल को पास करा लिया। बिल का विरोध करने वाली कांग्रेस के सदस्य विवेक तनखा, प्रताप सिंह बाजवा, मुकुट मिथी और रंजीब बिस्वाल व्हिप जारी होने के बावजूद गैर हाजिर रहे। इसके अलावा संजय सिंह ने तीन तलाक पर वोटिंग के दिन ही सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। भाजपा के प्रति तीखे तेवर दिखाने वाली राकांपा के प्रमुख शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल ने तो राज्यसभा में उपस्थित होना भी जरूरी नहीं समझा। हालांकि पवार के गले और जीभ के ऑपरेशन होने की खबर भी आई। लेकिन वो एक कार्यक्रम में फडणवीस के साथ मंच साझा करते हुए भी देखे गए। इसके अलावा टीएमसी, द्रुमक, आईयूएमएल और केरल कांग्रेस के एक-एक सदस्य भी वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहे। सदन के अंदर और बाहर इस बिल का विरोध करने वाले छह दलों ने तो वोटिंग से पहले ही वाक आउट कर इस बिल को पास कराने में अहम भूमिका निभाई। बसपा के चार, पीडीपी के दो, टीआरएस के छह, जदयू के छह, एआईएडीएमके के 11 और टीडीपी के दो सांसद अगर बिल के विरोध में वोट करते तो तीन तलाक बिल एक बार फिर राज्यसभा में लटक सकता था। लेकिन मोदी सरकार की रणनीति कहें या विपक्ष की नेतृत्वहीनता जो कांग्रेस अपने कुछ सांसदों को सदन में उपस्थित होने के लिए राजी नहीं कर सकी। साथ ही तीन तालक क विरोध करने वाले दलों को वोटिंग के दौरान सदन से वाक आउट करने से भी नहीं रोक सकी।
• तीन तलाक कहकर बीबी को छोड़ देना अपराध माना जाएगा।