पेरिस। संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जलवायु परिवर्तन मौजूदा समय के अनुसार जारी रहा तो 2100 तक समुद्र का स्तर एक मीटर तक बढ़ सकता है। जिसकी वजह से लाखों लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र का स्तर 30 और 60 सेमी के बीच बढ़ गया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य है। हालांकि, हम बढ़ते वैश्विक तापमान से निपटने में विफल साबित हो रहे हैं, जिससे समुद्र का स्तर 110 सेमी तक बढ़ सकता है।
अंडमान-निकोबार, मालदीव को कराना पड़ेगा खाली
जलवायु परिवर्तन के कारण अंडमान और निकोबार जैसे द्वीप समुद्र के स्तर में हो रही वृद्धि और चक्रवात जैसी घटनाओं में वृद्धि के कारण कुछ वर्षों बाद रहने लायक नहीं बचेंगे। अंडमान और निकोबार, मालदीव जैसे द्वीपों को खाली करना होगा। समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण लोगों को वहां से पलायन करना पड़ेगा। वहीं, महासागरों के गर्म होने से भारत में चक्रवात जैसी जलवायु घटनाओं की गंभीरता बढ़ जाएगी।
तूफान और अल नीनो का ज्यादा खतरा
संयुक्त राष्ट्र समर्थित पैनल द्वारा मोनाको में प्रस्तुत किए गए विश्लेषण में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन ने समुद्र के तापमान को बढ़ा दिया है, जिससे वे ज्यादा एसेडिक, कम उपजाऊ हो गए है। साथ ही तूफान और अल नीनो जैसे मौसम संबंधी घटनाओं के और घातक होने का खतरा बढ़ गया है।
प्रकृति और मानवता के लिए एक गंभीर खतरा
इस रिपोर्ट को तैयार करने में 36 देशों के 100 से अधिक लेखकों और 7,000 से अधिक वैज्ञानिक प्रकाशनों के स्रोतों द्वारा शोध कर तैयार किया गया है। आइपीसीसी के वाइस चेयरमैन को बैरेट ने कहा कि दुनिया के महासागर दशकों से जलवायु परिवर्तन से गर्मी ले रहे हैं। जो की प्रकृति और मानवता के लिए एक गंभीर खतरा है। महासागर में तेजी से बदलाव और हमारे धरती के जमे हुए हिस्से दूरदराज के आर्कटिक समुदायों के लोगों को मौलिक रूप से उनके जीवन के तरीकों को बदलने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
बदलावों से पानी की गुणवत्ता प्रभावित
चेंजिंग क्लाइमेट में ओशन एंड क्रायोस्फीयर पर विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जलवायु परिवर्तन वर्तमान गति से बढ़ता रहा तो यूरोप, पूर्वी अफ्रीका के ग्लेशियर, एंडीज और इंडोनेशिया की उष्णकटिबंधीय सदी के अंत तक अपने द्रव्यमान का 80 प्रतिशत खो सकते हैं। इस तरह के बदलावों से पानी की गुणवत्ता, कृषि, पर्यटन और ऊर्जा उद्योग प्रभावित होगा।
पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर खतरा
आइपीसीसी ने निष्कर्ष निकाला है कि महासागरों ने 1980 के दशक से वैश्विक गैस उत्सर्जन का एक चौथाई हिस्सा अवशोषित किया है, जिससे उन्हें अधिक एसेडिक बना दिया है। वैज्ञानिकों के पैनल ने यह भी चेतावनी दी थी कि आर्कटिक के बर्फ में कमी आ रही है। समुद्र का बढ़ता स्तर और बर्फ पिघलना विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले 670 मिलियन लोगों, 680 मिलियन निचले इलाकों में रहने वाले लोगों, चार मिलियन आर्कटिक क्षेत्रों में रहने वाले और 65 मिलियन छोटे द्वीपों पर रहने वाले लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा।