नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध दलगत स्वार्थों से प्रेरित है 

नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में कुछ विपक्षी दलों से प्रेरित राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा सारे देश में जिस स्तर पर हिंसा और आगजनी कराई जा रही है वह हर प्रकार से निंदनीय है| लोकतंत्र में नीतियों के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन एक सर्वमान्य परम्परा है, परन्तु उसमें हिंसा का कोई औचित्य नहीं है| उपरोक्त कानून लोकसभा और राज्यसभा में लम्बी और खुली बहस के बाद भारी बहुमत से पारित हुआ है| माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर तात्कालिक रोक लगाने से मना कर दिया है| फिर भी कुछ विपक्षी दल भारत के मुसलामान स्वजनों को उकसाने के लिए इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं| 
गैर-भाजपा शासित कई राज्यों के मुख्य मंत्रियों ने तो यह घोषणा भी की है कि वे अपने राज्यों में इस कानून को लागू नहीं होने देंगे| ऐसी अनर्गल घोषणा भारत के संविधान की प्रत्यक्ष अवहेलना और संघीय ढांचे को नष्ट करने का प्रयास है| पश्चिम बंगाल की माननीय मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी की संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा जनमत संग्रह की मांग भारत की संप्रभुता के विरुद्ध आतंरिक मामले में बाह्य हस्तक्षेप कराने का अक्षम्य प्रयास है| 
वर्ष १९४७ में सत्ता की भूख में कांग्रेस ने धर्म के आधार पर भारत का विभाजन स्वीकार किया था| भला पकिस्तान के हिस्से के तत्कालीन भारत में रहने वाले गैर-मुस्लिमों का क्या कसूर था जो उनको उन्मादी जिहादियों के जुल्म सहने के लिए छोड़ दिया था| सत्तर वर्षों से वे सभी गैर-मुस्लिम लोग कांग्रेस की ऐतिहासिक गलती का दण्ड भोग रहे हैं और नर्क से भी बदतर यातनाएं सह रहे हैं| उन सभी प्रताड़ित निराश्रितों को अपनाना भारत का नैतिक दायित्व था और है| नागरिकता संशोधन क़ानून द्वारा भारत ने अपने इस नैतिक दायित्व की ही पूर्ति की है| 
विशेष बात यह है कि इस कानून में केवल अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बंगलादेश से धर्म के आधार पर प्रताड़ित होकर 31 दिसम्बर 2014 तक भारत में आये हुए गैर-मुस्लिमों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है| किसी भी भारतीय नागरिक, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान या अन्य, की नागरिकता सम्बन्धी कोई भी विषय इस कानून में नहीं है| यह नागरिकता देने का कानून है न कि नागरिकता छीनने का| परन्तु, कुछ विपक्षी दल अपने तात्कालिक और निहित स्वार्थों  की सिद्धि के लिए भारत के संविधान का घोर अपमान कर रहे है, भारत के मुसलामानों में झूठा भ्रम प्रचारित करके डर पैदा कर रहे हैं और साम्प्रदायिक उन्माद फैला कर राष्ट्र को हिंसा  की आग में झोंक रहे हैं| 
निश्चय ही उपरोक्त राजनैतिक दलों में भी दूरदृष्टि सम्पन्न और राष्ट्रहित की चिंता करने वाले अनेक मनीषी मौजूद हैं| हम उनसे अपील करते हैं कि वे भारत के दूरगामी हितों की रक्षार्थ आगे आयें और अपने दलों के नेतृत्व के व्यक्तिगत और पारिवारिक स्वार्थों से ऊपर उठ कर देश को साम्प्रदायिक हिंसा की विभीषिका से बचाने का सद्प्रयत्न करें| आशा है कि हिंसा से त्रस्त मानवता की आर्त पुकार और भारत की जनता जनार्दन की मूक भाषा उन्हें अवश्य सुनाई देगी| 
राजनीति से दूर लेकिन समाज नीति से जुड़े सभी बुद्धिजीवियों से भी हमारा निवेदन है कि वे देश की इस संकट की घड़ी में आगे आयें और अपने प्रभाव का यथोचित प्रयोग कर अग्निशमन का पुण्य कार्य करें|