संजय लीला भंसाली पिता की बजाय क्यों जोड़ते हैं अपने नाम के साथ मां का नाम?


अधिकांश लोग अपने नाम के साथ पिता का नाम लिखते हैं और संजय लीला भंसाली जैसे लोग बिरले ही हैं जो अपनी मां का नाम जोड़ते हैं। इससे यह बात तो साफ समझ में आती है कि वे अपनी मां को कितना प्यार करते हैं। आखिर मां का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने की क्या वजह है? अधिकांश लोग अपने नाम के साथ पिता का नाम लिखते हैं और संजय लीला भंसाली जैसे लोग बिरले ही हैं जो अपनी मां का नाम जोड़ते हैं। इससे यह बात तो साफ समझ में आती है कि वे अपनी मां को कितना प्यार करते हैं। आखिर मां का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने की क्या वजह है? वे भी गायिका और डांसर थीं। उन्हें इक्का-दुक्का फिल्मों में छोटे रोल मिले, लेकिन इससे गुजारा होना मुश्किल था। उन्होंने साड़ी में फॉल लगाने का काम शुरू किया। छोटे-मोटे काम शुरू किए। इससे जो भी आमदनी होती थी उससे वे घर खर्चा चलाती थी। साथ में अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में भी उन्होंने प्रवेश दिलाया ताकि शिक्षा में कोई कमी नहीं रहे। इधर संजय के पिता को परिवार के आर्थिक संकट से कोई मतलब नहीं था। वे तो शराब में डूबे रहते थे। अपनी चिड़चिड़ाहट को वे घर में तोड़फोड़ कर निकाला करते थे। संजय को यह देख गुस्सा आता था, लेकिन वे कुछ नहीं कर पाते थे। संजय ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की। बाद में पुणे स्थित एफटीआईआई में दाखिला लिया। वहां से निकलने के बाद वे मुंबई आए। इधर संजय के पिता को परिवार के आर्थिक संकट से कोई मतलब नहीं था। वे तो शराब में डूबे रहते थे। अपनी चिड़चिड़ाहट को वे घर में तोड़फोड़ कर निकाला करते थे।संजय को यह देख गुस्सा आता था, लेकिन वे कुछ नहीं कर पाते थे। संजय ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की। बाद में पुणे स्थित एफटीआईआई में दाखिला लिया। वहां से निकलने के बाद वे मुंबई आए। भंसाली इसके बाद सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए। उन्होंने खामोशी : द म्युजिकल, देवदास, हम दिल दे चुके सनम, ब्लैक, बाजीराव मस्तानी और पद्मावत जैसी शानदार और सफल फिल्में बनाईं। भव्यता, भावना-प्रधान और खूबसूरती उनकी फिल्मों के स्थाई भाव रहते हैं। 24 फरवरी 1963 को जन्मे संजय लीला भंसाली से और भी उम्दा फिल्मों की उम्मीदें हैं।