शंकराचार्य स्वरूपानंद बोले- पीएम मोदी ने जिन वासुदेवानंद को ट्रस्ट में जगह दी, वह शंकराचार्य तो दूर संन्यासी भी नहीं

भोपाल. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रूप में वासुदेवानंद सरस्वती को जगह देने पर विवाद शुरू हो गया है। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा- "सुप्रीम कोर्ट ने अपने चार फैसलों में वासुदेवानंद सरस्वती को न शंकराचार्य माना और न ही संन्यासी माना है। ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य मैं हूं। ऐसे में प्रधानमंत्री ने ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रूप में वासुदेवानंद सरस्वती को ट्रस्ट में जगह देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है।"


शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया- अगर वास्तव में ट्रस्ट में शंकराचार्य को रखना ही था तो अध्यक्ष पद पर उन्हें रखा जाना चाहिए था। रामजन्म भूमि मामले पैरवी करने वाले अधिवक्ता के पाराशरण को ट्रस्ट का अध्यक्ष और उनके निवास को कार्यालय बनाया गया है। पाराशरण देश के वरिष्ठ वकील और संविधान के जानकार हैं, उनके अध्यक्ष बनने से ऐसा प्रतीत होता है कि अयोध्या में जिस राम मंदिर का निर्माण होगा। वह धर्मनिरपेक्ष संविधान के अनुसार बनाया जाएगा न कि वैदिक विधान के अनुसार।


दलित सदस्य के नाम पर विहिप नेता को शामिल करने पर भी आपत्ति
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा- ट्रस्ट में जिस अनुसूचित जाति के व्यक्ति को शामिल किया गया है, उसका संबंध है विश्व हिंदू परिषद से है। इसके अतिरिक्त कुछ सचिव और स्थानीय कलेक्टर सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हैं, ये धर्मनिरपेक्ष संविधान का सरासर उल्लंघन है। कोई भी ऐसा ट्रस्ट, जिसमें शासकीय व्यक्ति शामिल है। वह किसी भी धर्मस्थल के निर्माण के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकते हैं।


90 के दशक में बना था रामालय ट्रस्ट
शंकराचार्य ने बताया कि 90 के दशक में चारों शंकराचार्यों के सम्मेलन में राममंदिर निर्माण के लिए एक रामालय ट्रस्ट का गठन किया गया था, जिसमें शंकराचार्यों, वैष्णवाचार्यों, अखाड़े के प्रतिनिधियों सहित अन्य प्रतिनिधि सम्मिलित किए गए हैं। इस ट्रस्ट का निर्माण अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए ही किया गया था। केंद्र सरकार ने एक कार्य कर रहे ट्रस्ट की नया ट्रस्ट बनाकर अनदेखी की है।