दिल्ली हिंसा और हम भारत के लोग : जब एक सरदार ने अपने मान (पगड़ी) से बचाया बच्ची का सम्मान
एक तरफ दिल्ली के जलने और झुलसने के समाचार आंखों के सामने से गुजर रहे थे और दूसरी तरफ मेरे सामने बैठे थे एक फरिश्ते, इंसानियत के मसीहा, इंदौर के फादर टेरेसा अमरजीत सिंह सूदन. ...एक तरफ जहां धर्म, जाति और संप्रदाय को जानकर-पूछकर मारा जा रहा है वहीं दूसरी तरफ एक इंसान जो धर्म को देखे, जाने बिना मानवता का सहारा बन रहा है।

 

अमरजीत सिंह जो काम करते हैं वह कोई भी सुविधासंपन्न और सामान्य जिंदगी जी रहा इंसान कर ही नहीं सकता। जिन लावारिस, अपाहिज, मानसिक तौर पर मंद बुद्धि के लोग, असहाय, पीड़ित और गरीबों की दूर्दशा और गंदगी देखकर आप मुंह पर कपड़ा लगा लेते हैं, चेहरा फेर लेते हैं, अमरजीत सिंह बरसों से उनका हाथ थाम कर इंसानियत की इबारत रच रहे हैं... एक बहुत बड़ा दिल, बहुत गहरी भावनाएं और बहुत उंची इंसानियत चाहिए अमरजीत सिंह जैसा काम करने के लिए... बहुत हौसला चाहिए अपना हाथ बढ़ा कर एक कमजोर और जर्जर हाथ थामने के लिए..

 

इंदौर में वे पापाजी के नाम से मशहूर हैं.. हर किसी के पापाजी, पागलों के पापाजी, गरीबों के पापाजी, गूंगे बहरों के पापाजी और यहां तक कि लावारिस लाशों के पापाजी... सोच कर सिहर उठता है मन लेकिन वे यह काम जिस उदारता से करते हैं उन्हें देखकर मन भर आता है और गर्व हो आता है भारत की धरा पर ....जहां आज भी ऐसे इंसान बसते हैं, ऐसे मानव रहते हैं...

 

जब भी शर्म आएगी सांप्रदायिक हिंसा के अवशेषों को देखकर अमरजीत सिंह जैसे नाम तसल्ली देंगे कि अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है।

 

दिल्ली हिंसा के शातिरों, सोच से अपाहिज दंगाइयों जरा सुनें अमरजीत सिंह की कहानी कि कैसे वे अपने 'मान' (पगड़ी) से एक बच्ची का सम्मान रखते हैं। कैसे वे बिना सोचे अपनी पगड़ी अपने धर्म की लाज उतार कर पानी में डूबी एक 13 वर्षीया निर्वस्त्र बेटी को सैकड़ों की भीड़ में ओढ़ा देते हैं, उठाकर अस्पताल चल देते हैं और निर्लज्ज भीड़ तमाशाई बनी रह जाती है।