कांग्रेस ने सर्जिकल स्ट्राइक को स्वीकारा तो सही, अब राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीति न हो

कांग्रेस पार्टी ने अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा को सलाहकार और उनके नेतृत्व में एक समिति भी बनाने की घोषणा की जो राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर उसे सलाह देगी। लेफ्टिनेंट जनरल हुड्ड़ा भारतीय सेना के एक अनुभवी और शानदार पूर्व अधिकारी रहे हैं। मुझे इस बात पर जरा भी संदेह नहीं है कि वह इस पुरानी पार्टी को बेशकीमती सलाह देंगे। जनरल हुड्ड़ा की नियुक्ति महत्वपूर्ण है। य़ह कदम 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक को विलंबित और अनिच्छा से मान्यता तथा स्वीकृति देने का है जिसमें जनरल हुड्डा पूरी तरह से जुड़े हुए थे। मुझे पूरी उम्मीद है कि जनरल हुड्ड़ा सलाहकार पैनल के प्रमुख के तौर पर पार्टी के नेताओं को यह समझाएंगे कि सर्जिकल स्ट्राइक कोई रोजमर्रा का मामला नहीं है जो अतीत में कई बार हुआ हो, यह भारत के लिए महत्वपूर्ण था। यह अजीब सी बात है कि एक पार्टी जिसने देश पर 50 साल शासन किया हो उसे राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में समझाया जाए। मैं इस बात से आश्वस्त हूं कि विशेषज्ञ कांग्रेस पार्टी को रणनीति संबंधी प्राथमिक मुद्दों के बारे में कुछ खास बिन्दुओं के बारे में बताएंगे। मैं यहां कुछ प्राथमिक मुद्दे गिनाना चाहूंगा जो राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों की निरंतरता से जुड़े हुए हैं: 


1. दुनिया में ऐसी धारणा न बनने दें कि आतंकवाद से कैसे लड़ा जाए, इस मामले पर भारत बंटा हुआ है। जब सारी दुनिया भारत के पीछे खड़ी हो तो विपक्ष को विरोध के स्वर नहीं उठाने चाहिए। 

2. आतंकवाद पर राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को तुच्छ न बनाएं जैसा गत सप्ताह कांग्रेस प्रवक्ता ने किया था। 

3. अगली बार जब आतंकवादी या पृथकतावादी भारत तोड़ो के नारे लगाएं (जेएनयू की घटना) तो मुख्य धारा की पार्टियों को उनका समर्थन नहीं करना चाहिए। भारत को तोड़ने की वकालत करने जैसे भाषण की कोई स्वतंत्रता नहीं है। 

4. भारत में अवैध घुसपैठ को बढ़ावा न दें और ऐसे कदमों को रोकें जो इन्हें रोकने के लिए उठाए जाते हैं। इससे देश की सुऱक्षा को खतरा बढ़ता है। 

5. हमारी सेना दुनिया की सबसे प्रोफेशनल फौजों में से है जिसने देश की सेवा बहुत अच्छे तरीके से की है। वे नागरिक कमान के अंतर्गत काम करते हैं और देश की आंतरिक राजनीति से थोड़ी दूरी भी बनाए रखते हैं। राजनीतिज्ञों को सेना के जवानों या प्रमुख के बारे में अपनी हल्के विचार नहीं रखने चाहिए। सेना के प्रमुख को सड़क का गुंडा नहीं कहा जाना चाहिए।  
6. जब सुरक्षा बलों के जवान आतंकियों से लड़ते हैं और त्याग करते हैं (उदाहरण बाटला हाउस), तो आतंकियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े न हों और न ही आंतकवाद के खिलाफ युद्ध को झूठी मुठभेड़ की संज्ञा दें। 

7. जब हमारी गुप्तचर एजेंसियां सुरक्षा बलों के साथ आतंकवादियों के खिलाफ मुहिम (इशरत जहां मामला) छेड़ती हैं तो जांच एजेंसियों और भारत के सुरक्षा तंत्र पर प्रश्न न उठाएं। 

8. राजनीतिक लाभ उठाने के लिए रक्षा की खरीद का राजनीतिककरण नहीं करें और न ही झूठे या काल्पनिक आंकड़े न दें। इससे रक्षा की तैयारियों को धक्का लगता है।