आपसी कटुता भुलाकर मिल जुलकर मनाया जाने वाला पर्व है होली

होली पर्व भारत में धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला प्राचीन पर्व है। होली पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुल महीने के शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली पर्व भारत में परम्परागत रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को पूजा की होली मनाई जाती है। इस दिन होलिका दहन होता है। इस दिन गोबर के उपलों या लकड़ियों से भारत में जगह-जगह होली रखी जाती है। सभी लोग प्राचीन परम्परों के अनुसार होली को पूजते हैं और रात में होलिका दहन होता है। जलती हुई होली के चारों और लोग परिक्रमा करते हैं और अपने लिये और अपनों के लिए मनौतियां मांगतें हैं। उत्तर भारत में होलिका दहन के दिन जलती हुई होली में गेहूं की बाल को भूनकर खाने की परम्परा है। होली के दूसरे दिन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपद़ा को धुलेंडी यानी कि खेलने वाली होली मनाई जाती है। धुलेंडी के दिन लोग एक दूसरे को सुबह उठकर गुलाल लगाने जाते हैं। इस दिन छोटे अपने बड़ों से गुलाल लगाकर आशीर्वाद लेते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं और पारम्परिक रूप से होली मनाते हैं। इस दिन घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। धुलेंडी के दिन भारत देश के गली मोहल्लों में ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और नाच-कूद किये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि होली के दिन लोग अपने गले-शिकवे और आपसी कटुता भूल कर एक दूसरे से गले मिलते हैं और पुनः दोस्त बन जाते हैं। रंगों से होली खेलने और नाचने-गाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद लोग नहा-धोकर थोड़ा विश्राम करने के पश्चात् नए कपड़े पहन कर सांझ में एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं। लोग अपनी कटुता भुलाकर गले मिलते हैं और एक दूसरे को होली पर पारम्परिक रूप से बनायी जाने वाली गुजिया और अन्य मिठाइयां खिलाते हैं। अगर ब्रज की बात की जाए तो ब्रज में होली पर्व की शुरुआत वसंत पंचमी के दिन से हो जाती है। वसंत पंचमी के दिन ब्रज के सभी मंदिरों और चैक-चैराहों पर होलिका दहन के स्थान पर होली का प्रतीक एक लकड़ी का टुकड़ा गाड़ दिया जाता है और लगातार 45 दिनों तक ब्रज के सभी प्राचीन मंदिरों में प्रतिदिन होली के प्राचीन गीत गए जाते हैं। ब्रज कि महारानी राधा जी के गाँव बरसाने में होली से आठ दिन पहले फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन लड्डू मार होली से इस प्राचीन पर्व की शुरुआत होती है। इसके बाद फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन से लठमार होली की शुरुआत होती है जो कि होली का त्यौहार खत्म होने तक लगातार चलती है। पूरे विश्व भर में मशहूर बरसाना की लठमार होली में (हुरियारिनें) महिलाएं पुरुषों (हुरियारों) के पीछे अपनी लाठी लेकर भागती हैं और लाठी से मारती हैं। हुरियारे खुद को ढाल से बचाते हैं। इस लठमार होली को दुनियाभर से लोग देखने को आते हैं। यह होली राधा रानी के गाँव बरसाने और श्रीकृष्ण जी के गाँव नंदगांव के लोगों के बीच में होती है। बरसाने और नंदगांव गांवों के बीच लठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है।