बड़ी भूमिका निभाएगा कोलकाता का बड़ाबाजार

कोलकाता। देश के सबसे बड़े थोक बाजारों में शुमार कोलकाता का बड़ाबाजार सिर्फ व्यावसायिक गतिविधियों के लिए नहीं जाना जाता, बल्कि देश की सियासत में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता आ रहा है। यहां के कारोबारी हमेशा से ही देश की व्यावसायिक रणनीति का अहम हिस्सा रहे हैं। तभी तो यहां नोटबंदी और जीएसटी के समर्थन और विरोध के नारे सुनने को मिलते हैं। यहां के कारोबारियों की सियासी दिलचस्पी जगजाहिर है। आनंदीलाल पोद्दार सरीखे कांग्रेसी नेता इसकी बेजोड़ मिसाल हैं। उन्होंने स्थानीय व्यापारियों का बंगाल विधानसभा में लंबे अरसे तक प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, बड़ाबाजार की अहमियत बंगाल की राजनीति तक ही सीमित नहीं है, देश की सियासत में भी इसका व्यापक असर है। बड़ाबाजार में शुरू से हिंदी भाषियों का दबदबा रहा है। यहां बैठकर कारोबारी दुनियाभर में कारोबार करते हैं, जिसका एक अच्छा-खासा हिस्सा राजस्व के रूप में राज्य व केंद्र सरकारों को प्राप्त होता है। इसी का नतीजा है कि उम्मीदवार के नाम की घोषणा करने से पहले हरदल यहां के व्यापारिक संगठनों से चर्चा जरूर करते हैं। यहां के लाखों कारोबारियों और उनके परिजनों के वोट नतीजों को काफी प्रभावित करते हैं। बड़ाबाजार में रिहायशी इलाके भी कम नहीं हैं। एक बड़ी आबादी यहां की संकरी गलियों व दशकों पुराने मकानों में रहती है। सैकड़ों सामाजिक व सेवा संस्थाओं के कार्यालय भी इस इलाके में हैं। परिसीमन आयोग के सुझाव पर 2008 में इस लोकसभा सीट का गठन हुआ था। इससे पहले बड़ाबाजार उत्तर-पूर्व कलकत्ता संसदीय क्षेत्र में शामिल था, जहां कभी माकपा, तो कभी कांग्रेस जीत दर्ज करती रही। तृणमूल कांग्रेस के गठन के बाद इस सीट पर 2004 तक तृणमूल का कब्जा रहा। 2004 में तृणमूल उम्मीदवार अजीत कुमार पांजा को हराकर माकपा नेता मोहम्मद सलीम सांसद चुने गए। परिसीमन के बाद 2009 में हुए लोस चुनाव में तृणमूल उम्मीदवार सुदीप बंदोपाध्याय ने मोहम्मद सलीम को मात देकर इस सीट पर कब्जा कर लिया। 2014 में मोदी लहर में भी तृणमूल का इस सीट पर कब्जा कायम रहा। सुदीप बंद्योपाध्याय तीन लाख 43 हजार 687 मतों से फिर विजयी हुए। हालांकि, पहले की तुलना में तृणमूल के वोट फीसद में 16.96 फीसद की गिरावट देखी गई।