नई लोकसभा की तकदीर लिखेंगे युवा

लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। 13, आंध्र प्रदेश 12, महाराष्ट्र 12, मध्य-प्रदेश 11 एवं असम 10 सीटें हर वर्ग और हर जाति को लुभाने की कवायदें काफी दिनों हैं। देश में सबसे ज्यादा 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में नए मतदाताओं हैं। मगर 17वीं लोकसभा की तकदीर लिखने में युवाओं की की औसत संख्या 1.15 लाख है। यह 2014 के चुनावों में यहां की एवं निर्णायक भूमिका होगी। गोया, सभी राजनीतिक दलों की लोकसभा सीटों पर जीत के औसत अंतर 1.86 लाख से कम है। तब युवाओं पर टिकी हैं। बढ़ती बेरोजगारी को लेकर युवा नरेंद्र मोदी सपा एवं बसपा ने अलग-अलग रहते हुए चुनाव लड़ा था। किंतु अब से नाराज दिख रहे थे, लेकिन पुलवामा में सुरक्षाबल पर हुए अखिलेश यादव और मायावती ने अपने दलों को गठबंधन का रूप आत्मघाती हमले और फिर बालाकोट में वायुसेना की एयर स्ट्राइक के देकर वोट के विभाजन को कम करने का काम कर लिया है। फिलहाल ऐसा लग रहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा ने युवाओं के भीतर राष्ट्रवाद को इस गठबंधन में कांग्रेस शामिल नहीं है। बावजूद जरूरी नहीं है कि जबरदस्त ढंग उभारा है। सोशल मीडिया ने इस ज्वार को उभारने में राष्ट्रवाद के ज्वार से व्याकुल युवा इस गठबंधन को वोट दे हीं क्योंकि भूमिका निभाई है। बहरहाल, इस बार चुनाव में 1.6 करोड़ ऐसे राहुल गांधी और मायावती समेत कांग्रेस व विपक्ष के अनेक नेता एयर होंगे, जो पहली बार मत का उपयोग करेंगे। इन्होंने 2014 के स्ट्राइक में मरे आतंकवादियों की संख्या और सबूत बताने की जो जिद लोकसभा चुनाव के बीते छह माह के भीतर 18 वर्ष की उम्र पूरी की कर रहे हैं, उससे वे नुकसान उठाने की जद में आते जा रहे हैं। से अनेक ऐसे भी रहे हैं, जिन्होंने 2018 के अंत में हुए पांच 1997-2001 के वर्ष में जन्मा यह मतदाता 2014 के चुनाव विधानसभाओं के चुनाव में मतदान किया है। यानी अनेक की मतदान में मतदान के योग्य नहीं था। अब उत्तर-प्रदेश में 24 सीटें ऐसी हैं, ललक मतदान के पहले अनुभव में तब्दील हो चुकी है। जिनके भाग्य का फैसला युवा मतदाता करेगा। यदि 18 से 35 वर्ष 2019 के चुनाव की ढपली अब बज चुकी है। निर्वाचन आयोग के मतदाताओं को युवा मतदाताओं की श्रेणी में रखें तो उत्तर-प्रदेश में जारी आंकड़ों के मुताबिक, 282 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों इनकी कुल संख्या 12 करोड़ 36 लाख बैठती है। जाहिर है, ये नई किस्मत की कुंजी युवाओं के ही हाथ में है। आयोग द्वारा उम्रवार लोकसभा की तकदीर लिखने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। मतदाताओं के वर्गीकरण एवं विश्लेषण की जो रिपोर्ट आई है, उसके वैसे भी सबसे ज्यादा सांसद देने के कारण उत्तर-प्रदेश के साथ यह इस चुनाव में 1.6 करोड़ नए मतदाता होंगे। ये युवा मतदाता विशेषण जुड़ा हुआ है कि देश की सकार और प्रधानमंत्री बनने का राज्यों की कम से कम 282 सीटों पर चुनावी समीकरणों को रास्ता इसी राज्य से निकलता है। गोया, युवा ठान लें तो इस परंपरा की प्रभावित करेंगे। प्रत्येक लोकसभा सीट पर करीब 1.5 लाख मतदाता एक बार फिर से पुनरावृत्ति हो सकती है। बहरहाल, इस लोकसभा होंगे, जो पहली बार मतदान करेंगे। रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 के चुनाव में युवाओं की मंशा और हवा का रुख जो भी रहे, उसमें युवाओं लोकसभा चुनाव में 282 सीटों पर मिली जीत के अंतर के लिहाज द्वारा लाए जाने वाले बदलाव की झलक मिलना तय है। ऐसी धरणा मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। 1997 और 2001 के बीच है कि युवा मतदाता जब भी 18 वर्ष की आयु पूरी होने पर पहली बार इनमें से कुछ युवा मतदाताओं ने विधानसभा चुनाव में मतदान मतदान करता है तो वह समझ के स्तर पर कमोबेश अपरिपक्व होता , लेकिन आम चुनाव में वे पहली बार मतदान करेंगे। है। इसलिए उसमें रूढ़िवादी, सांप्रदायिक और जातीय जड़ता नहीं होती आयोग की रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न राज्यों में 2015 में हुए है। इसलिए वह निर्लिप्त भाव से निष्पक्ष मतदान करता है। विधानसभा चुनावों के नए मतदाताओं से लेकर वर्ष 2018 तक के यह युवा अभिभावक की इच्छा के मुताबिक भी मतदान करता विधानसभा चुनावों के नए मतदाताओं की संख्या का औसत निकाला रहा है। किंतु अब मुट्ठी में मोबाइल होने से वह धार्मिक, सामाजिक, इसमें पाया गया है कि 12 प्रांतों के नए मतदाताओं की संख्या आर्थिक और हरेक राजनीतिक घटनाक्रम की जानकारी हासिल कर के लोकसभा चुनाव में 217 सीटों पर जीत के अंतर से कहीं लेता है और अपनी मानसिकता इन प्रभावों के अनुरूप ढाल लेता है। है। इन राज्यों में पश्चिम बंगाल में 32, बिहार 29, उत्तर प्रदेश इसलिए वह सोशल साइटों पर अपनी बेवाक प्रतिक्रिया भी उजागर कर कर्नाटक 20, तमिलनाडु 20, राजस्थान 17, केरल 17, झारखंड देता है और किस राजनीतिक नेतृत्व के प्रभाव में क्यों है, इस भाव का भी प्रगटीकरण कर देता है। समाचार चैनल उसे प्रभावित तो करते हैंलेकिन मीडिया के राजनीतिक प्रबंधन की चालाकी को वह समझने में परिपक्व हो गया है। इसलिए फर्जी अथवा उत्सर्जित समाचार और वास्तविक समाचार के अंतर को वह भलिभांति समझने लगा है। इस असलियत को चित्र और दृश्य के माध्यमों से जानने के उसके पास अनेक स्रोत हैं, इसलिए वह इन्हें देखकर स्वयं तुलनात्मक विष्लेशण करता है और अपनी राय बनाता है। पुलवामा हमले से पहले और उसके बाद आतंकी शिविरों पर की गई एयर स्ट्राइक ने युवाओं के मन को मथने का काम किया है। इन घटनाचक्रों से पहले तक युवाओं मन में रोजगार का संकट बड़ी समस्या के रूप में घर कर गया थालेकिन पुलवामा में 44 सैनिकों की शहादत और फिर अभिनंदन की बहादुरी ने युवाओं के मन में गहरा राष्ट्रीयता का भाव जगाने का काम किया है। इसे कई मतवाद से ग्रस्त पूर्वाग्रही अंध राष्ट्रवाद कहकर इन युवाओं को बुद्धिहीन भी ठहराने की भूल कर रहे हैं। युवा समझ रहा है कि आतंकियों की संख्या बताने के जो बयान विपक्षी नेता दे रहे हैंवे सिर्फ अपने राजनीतिक हित साधने के लिए हैं। सेना के पराक्रम पर संदेह ज्यादातर युवाओं के मन को बेचैन कर रहा है। ऐसे में यह कश्मकश उनके भीतर उमड़-धुमड़ रही है कि वंशवादीपरिवारवादी और जातिवादी राजनीति के क्या राष्ट्रहित हो सकते हैंराष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद व अलगाववाद की चिंगारी को भड़काने लगे देशद्रोहियों पर नियंत्रण का शिकंजा कौन कस सकता है? इस तरह के जिन राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर पुलवामा हमले के बाद ज्वार आया हैवह पारंपारिक राजनीतिक विचारधारा से भिन्न है। ऐसे में युवा मतदाता परिवारिक विचारधारा के प्रतिकूल जाकर भी मतदान कर सकता हैदरअसल युवाओं को पता हैएयर स्ट्राइक हुई है। ऐसे मामलों में दुनिया का कोई भी देश सरकार और सेना से सबूत नहीं मांगता है। फिर भी अपने ही देश के कुछ नेताओं को एयर स्ट्राइक पर संदेह है तो युवा उनकी देशभक्ति पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े करने लग गए हैं। इसे सोशल साइटों पर युवाओं द्वारा की जा रही टिप्पाणियों से आसानी से समझा जा सकता है। फिर भी युवा मतदाता राष्ट्रवाद के ज्वार में बहकर एक तरफा मतदान करेगा, ऐसा मानना भी बड़ी भूल होगीबाबजूद विपक्षी राजनेता यदि अनर्गल प्रलाप से बचते तो ज्यादा बेहतर होता।