रंगभरी एकादशी 17 मार्च को

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस दिन काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बाबा विश्वनाथ फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि के दिन मां पार्वती से विवाह रचाने के बाद फाल्गुन शुक्ल एकादशी पर गौना लेकर काशी आए थे। इस अवसर पर शिव परिवार की चल प्रतिमाएं काशी विश्वनाथ मंदिर में लाई जाती हैं और बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंगल वाध्ययंत्रों की ध्वनि के साथ अपने काशी क्षेत्र के भ्रमण पर अपनी जनता, भक्त और श्रद्धालुओं का यथोचित लेने व आशीर्वाद देने सपरिवार निकलते हैं। इस बार रंगभरी एकादशी 17 मार्च को है। 




  1. खेली जाती है भभूत की होली 


     


    मान्यता है कि इस दिन बाबा विश्वनाथ स्वयं भक्तों के साथ होली खेलते हैं। इस दिन महंत आवास से रजत पालकी में राजशाही पगड़ी बांधे बाबा विश्वनाथ की बारात सजती है। इसके साथ ही हिमालय की पुत्री गौरी को भी सजाया जाएगा। साथ में बालरूप गणेश भी रहते हैं। इस अ‌वसर पर शाम के समय बाबा की पालकी उठने से पहले भभूत की होली खेली जाती है। इसके बाद शोभायात्रा निकलती है। इसमें हजारों की संख्या में भक्त अबीर-गुलाल उड़ाते चलते हैं। इसके बाद गर्भगृह में प्रतिमाएं स्थापित कर होली खेलने के बाद विशेष सप्तर्षि आरती की जाती है। 


     




  2. आमलकी एकादशी


     


    रंगभरी एकादशी को आमलकी (आंवला) एकादशी कहते है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है और अन्नपूर्णा की स्वर्ण की या चांदी की मूर्ति के दर्शन किए जाते हैं। ये सब पापों का नाश करता है। इस वृक्ष की उत्पत्ति भगवान विष्णु द्वारा हुई थी। इसी समय भगवान ने ब्रह्मा जी को भी उत्पन्न किया, जिससे इस संसार के सारे जीव उत्पन्न हुए।


     




  3. व्रत विधि 


     


    सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। तैयार होकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। व्रत करने वाले एक समय फलाहार कर सकते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा करने के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन करवाएं और दान करें।