अखिलेश अपर्णा यादव को टिकट देकर मुलायम की नाराजगी दूर करना चाहते हैं


परिवार में रार कम करने और पिता मुलायम सिंह यादव का गुस्सा कम करने के लिए समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव अपने छोटे भाई की पत्नी अर्पणा यादव को भी लोकसभा चुनाव का टिकट थमाने जा रहे हैं। अपर्णा को संभल संसदीय सीट से टिकट मिलने की अटकलें लग रही हैं। अखिलेश ने जब से अपनी पत्नी डिंपल यादव का टिकट फाइनल करा है, तब से उनके ऊपर अपर्णा को टिकट देने का पारिवारिक दबाव बढ़ता जा रहा था। सूत्र बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव अपर्णा को संभल से टिकट देने को लेकर अड़े हुए हैं। अपर्णा यादव भी कह रही हैं कि भैया और नेताजी (अखिलेश और मुलायम) चाहेंगे तो वह चुनाव लड़ सकती हैं। अपर्णा संभवतः चुनाव तो लड़ेंगी, लेकिन वह 2017 वाली गलती नहीं दोहराएंगी जब उनको अपने ही लोगों ने चुनाव लड़ाने के नाम पर बलि का बकरा बना दिया था। अपर्णा को लखनऊ कैंट सीट से टिकट दिया गया गया था, जहां से भाजपा के टिकट पर कद्दावर नेता डॉ. रीता बहुगुणा जोशी की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी इतना ही नहीं अखिलेश ने अपर्णा के संसदीय क्षेत्र में प्रचार करने में भी काफी कंजूसी दिखाई दी। डिम्पल ने तो अपर्णा के लिए प्रचार किया भी था, लेकिन अखिलेश प्रचार के लिए नहीं आए थे। इसी के चलते अपर्णा को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। बात संभल की कि जाए तो संभल लोकसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। यादव बाहुल्य वाली इस सीट ने समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के कई सदस्यों को संसद की चौखट तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं गठन के बाद पहली ही बार किसी महिला को सांसद बनाने का श्रेय भी इस सीट को है। 1977 से 2014 तक हुए 11 लोकसभा चुनावों में से छह बार यहां से यादव प्रत्याशी ही जीते। इनमें दो बार श्रीपाल सिंह यादव, दो बार खुद मुलायम सिंह यादव, एक बार प्रो. राम गोपाल यादव और एक बार धर्मपाल यादव सांसद बने। 2004 में परिसीमन के बाद इस सीट का जातीय गणित काफी बदला है और इस सीट पर यादव मतदाताओं की संख्या कम हा गई। 


बहरहाल, अपर्णा यादव को संभल से उम्मीदवार बनाने को लेकर अखिलेश एक दो दिन में फैसला सुना सकते हैं। अगर अपर्णा को टिकट मिलता है तो परिवार में चल रही उठा−पटक कुछ हद तक शांत हो सकती है। संभल सीट से अपर्णा को टिकट देने से उनकी जीत की संभावनाएं काफी बढ़ा जायेंगी। यह बात पुख्ता तौर से समझनी हो तो संभल लोकसभा सीट का पुराना इतिहास खंगालना जरूरी है। मुलायम सिंह यादव 1998 में संभल सीट से चुनाव मैदान में उतरे तो संभल की जनता ने उन्हें डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से जिताया था। इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में भी संभल ने उन्हें जीत दिलाई। 2004 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने चचेरे भाई रामगोपाल यादव को संभल से चुनाव लड़ने के लिए भेजा तो रामगोपाल रिकॉर्ड वोटों से जीते। 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले ही संभल सीट का परिसीमन बदलते हुए यादव बाहुल्य गुन्नौर व बिसौली सीटों को बदायूं सीट से जोड़ दिया गया तो फिर बदले हालात में मुलायम परिवार का कोई सदस्य संभल सीट से चुनाव लड़ने के लिए नहीं आया। सपा−बसपा गठबंधन के बाद संभल की सीट पर सपा प्रत्याशी की जीत की संभावनाएं एक बार फिर बढ़ गई हैं।

 

बताते चलें कि पिछले एक साल से मुलायम कुनबे के कई सदस्यों की संभल से चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा चल रही है। पहले प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने मन बनाया था तो बाद में डिंपल यादव और खुद अखिलेश यादव के भी इस सीट से चुनाव लड़ने को लेकर मंथन हुआ। चुनाव का ऐलान हो जाने के बाद अब मुलायम के दूसरे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव को सपा−बसपा गठबंधन उम्मीदवार के रूप में संभल लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारने की बात कही जा रही है।