अक्षय नवमी 2019 : मंत्र, महत्व और मुहूर्त सब जानिए यहां

का​र्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या आंवला नवमी कहा जाता है। इस वर्ष अक्षय नवमी या आंवला नवमी 05 नवंबर दिन मंगलवार को है। अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा होती है। भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा की तिथि तक आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं।

 

अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के अतिरिक्त भगवान विष्णु की भी विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। अक्षय नवमी के दिन स्नान, पूजा, तर्पण तथा अन्नादि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। अक्षय नवमी को धात्री नवमी और कूष्माण्ड नवमी नवमी के नाम से भी जाना जाता है।


आंवला नवमी पूजा मुहूर्त


 




अक्षय नवमी 05 नवंबर 2019, मंगलवार को मनाई जा रही है।

 

शुभ मुहूर्त : सुबह 06 बजकर 36 मिनट से दोपहर 12 बजकर 04 मिनट तक।

 


अक्षय नवमी व्रत विधान और मंत्र

 

मंगलवार की सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर अपने दाहिने हाथ में जल, अक्षत्, पुष्प आदि लेकर नीचे लिखे मंत्र से व्रत का संकल्प लें।

 

'अद्येत्यादि अमुकगोत्रोsमुक शर्माहं (वर्मा, गुप्तो, वा) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये'

 

व्रत संकल्प के बाद आप आंवले के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें। इसके बाद 'ॐ धात्र्यै नम:' मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करें। फिर नीचे लिखे मंत्र से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-

 

पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।

ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूले अक्षयं पय:।।

 

आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।

ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूले अक्षयं पय:।।

 

पितरों का तर्पण करने के बाद आंवले के पेड़ के तने में सूत्र बांधना है। नीचे दिए मंत्र का उच्चारण करते हुए सूत्र बांधें।

 

दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।

सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।

 

फिर कपूर या गाय के घी से दीप जलाएं और आंवले के पेड़ की आरती करें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण कर उस आंवले के पेड़ की प्रदक्षिणा करें।

 

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।

 

पेड़ के नीचे ब्राह्मण को भोजन कराएं।

 

स्वयं पेड़ के नीचे भोजन ग्रहण करें। फिर एक पका हुआ कोंहड़ा (कूष्माण्ड) लेकर उसके अंदर रत्न, सुवर्ण, रजत या रुपया आदि रखकर निम्न संकल्प करें-

 

'ममाखिलपापक्षयपूर्वकसुखसौभाग्यादीनामुत्तरोत्तराभिवद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये'

 

इसके बाद ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित उस कूष्माण्ड दे दें और निम्न प्रार्थना करें। फिर पितरों को सर्दी से बचाने के लिए अपनी शक्ति अनुसार कंबल आदि किसी ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

 

कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।

दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।