पूर्व CJI गोगोई का पलटवार, 5-6 लोगों की 'लॉबी' न्यायपालिका के लिए खतरा


नई दिल्ली। राज्यसभा सदस्य के तौर पर मनोनयन स्वीकार करने के बाद से आलोचनाओं का सामना कर रहे पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा है कि 5-6 लोगों की एक लॉबी के शिकंजे की वजह से न्यायपालिका खतरे में है। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गोगोई ने कहा कि यह लॉबी उन न्यायाधीशों को बदनाम करने का प्रयास करती है, जो उसकी इच्छा के अनुरूप फैसला नहीं सुनाते। न्यायपालिका की आजादी का मतलब इस पर 5-6 लोगों का शिकंजा खत्म करना है। जब तक यह शिकंजा खत्म नहीं किया जाएगा, न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं हो सकती। उन्होंने न्यायाधीशों को एक तरह से बंधक बना लिया है। उन्होंने कहा कि अगर किसी मामले में उनकी मर्जी का फैसला नहीं होता तो वे न्यायाधीशों को हर मुमकिन तरीके से बदनाम करते हैं। मैं उन न्यायाधीशों के लिए चिंतित हूं, जो यथास्थितिवादी हैं, जो इस लॉबी से पंगा नहीं लेना चाहते और शांति से सेवानिवृत्त होना चाहते हैं।


उन्होंने उन आलोचनाओं को सिरे से खारिज कर दिया कि राज्यसभा में उनका मनोनयन अयोध्या और राफेल सौदे से संबंधित फैसले का पुरस्कार है। उन्होंने कहा कि उन्हें लॉबी की बात नहीं मानने के कारण बदनाम किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अगर कोई न्यायाधीश अपनी अंतरात्मा के हिसाब से मामले का फैसला नहीं लेता है तो वह अपनी शपथ को लेकर ईमानदार नहीं है। अगर कोई न्यायाधीश 5-6 लोगों के डर से कोई फैसला ले तो वह अपनी शपथ के प्रति सच्चा नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा के अनुसार फैसले सुनाए। अगर ऐसा नहीं करते तो एक न्यायाधीश के तौर पर ईमानदार नहीं रह पाते।


न्यायमूर्ति गोगोई ने अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि अगर अयोध्या फैसले की चर्चा की जाए तो यह सर्वसम्मत था। 5 न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मत फैसला सुनाया था। इसी तरह राफेल भी 3 न्यायाधीशों की पीठ का सर्वसम्मत फैसला था। इन फैसलों पर सवाल उठाकर क्या वे इन दोनों फैसले से जुड़े सभी न्यायाधीशों की ईमानदारी पर सवाल नहीं उठा रहे हैं?
उन्होंने 2018 में हुए संवाददाता सम्मेलन का जिक्र करते हुए कहा कि जब मैंने जनवरी 2018 में प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो मैं लॉबी का प्रिय था लेकिन वे चाहते थे कि न्यायाधीश मामलों का फैसला उनके हिसाब से करें और उसके बाद ही वे उन्हें 'स्वतंत्र न्यायाधीश' का प्रमाण पत्र देंगे। मैंने वही किया जो मुझे सही लगा, अगर ऐसा नहीं करता तो मैं न्यायाधीश के तौर पर खुद के प्रति सच्चा नहीं रह पाता।



उन्होंने कहा कि दूसरों की राय से (पत्नी को छोड़कर) न कभी डरा था, न डरता हूं और न ही डरूंगा। मेरे बारे में दूसरों की राय क्या है, यह मेरी नहीं बल्कि उनकी समस्या है और इसे उन्हें ही हल करना है। क्या मैं आलोचना से डरता हूं? अगर हां तो क्या मैं एक न्यायाधीश के तौर पर काम कर सकता था?