डैनियल पर्लः वो पत्रकार जिसकी पाकिस्तान में अपहरण के बाद हत्या कर दी गई थी

ये 6 फरवरी 2002 की बात है। पुलिस सर्विस डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल जावेद नूर लाहौर में अपने सरकारी आवास 14 एकमन रोड पर मौजूद थे। तभी अचानक तत्कालीन होम सेक्रेटरी पंजाब ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) एजाज शाह ने उन्हें बताया कि डैनियल पर्ल के अपहरण में एक बड़ी कार्रवाई हुई है और वो ये कि इस केस के मुल्जिम अहमद उमर शेख उनके सामने गिरफ्तारी देने के लिए पेश हो गए हैं।
उस समय तक किसी को ये पता नहीं था कि डैनियल पर्ल की हत्या हो चुकी है। ब्रिगेडियर एजाज शाह चाहते थे कि अभियुक्त अहमद उमर शेख को पूरी तरह कानूनी तरीके से पुलिस के हवाले किया जाए।


हैरान करने वाली बात ये थी कि अहमद उमर शेख की गिरफ्तारी से पहले मोहिनी रोड लाहौर से उसके बूढ़े दादा शेख मोहम्मद इस्माइल, चाचा तारिक इस्माइल और शेख के जौहर टाउन लाहौर ससुराली रिश्तेदारों को गैर-कानूनी तौर पर उठाया गया था।


उनके परिवार को कथित तौर पर धमकियां भी दी गई थी कि अगर अहमद उमर शेख को पेश न किया गया तो घर की महिलाओं को भी उठा लिया जाएगा।


डैनियल पर्ल केस
अहमद उमर शेख के एक मामा डिस्ट्रिक्ट एन्ड सेशन जज थे और उन दिनों मुजफ्फरगढ़ में पोस्टिंग पर थे। उन्होंने सारे मामले को देखा और इस तरह घर वालों के कहने पर अहमद उमर शेख को गिरफ्तारी देने के लिए तैयार किया गया। उमर शेख के घर वालों के खिलाफ कार्रवाई पुलिस ही नहीं कर रही थी बल्कि दूसरी एजेंसियां भी एक्टिव थीं।


जावेद नूर ने होम सेक्रेटरी को बताया कि वो अपने आवास पर मौजूद हैं तो होम सेक्रेटरी एजाज शाह अभियुक्त अहमद उमर शेख, उनके पिता सईद अहमद शेख और उनकी मां शेख अब्दुर्रउफ डिस्ट्रिक्ट एन्ड सेशन जज मुजफ्फरगढ़ डीआईजी जावेद नूर के घर पहुंचे।


जावेद नूर ने अपने ड्रॉइंग रूम में सब को बिठाया। ब्रिगेडियर एजाज शाह ने सारा मामला जावेद नूर को बताया और इस तरह अभियुक्त अहमद उमर शेख की गिरफ्तारी के कानूनी पहलू पूरे किए गए और अहमद उमर शेख का आत्मसमर्पण हुआ।


इसके बाद पुलिस और खुफिया विभाग ने पूछताछ शुरू की और 12 फरवरी को उन्हें पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की फ्लाइट से पूरी सुरक्षा के साथ कराची भेज दिया गया।


पीआईए की फ्लाइट से...
ये कहानी मुझे उस समय के डीआईजी जावेद नूर ने कई साल पहले सुनाई थी जिसकी पुष्टि अक्तूबर 2014 में ब्रिगेडियर रिटायर्ड एजाज शाह ने अपने लाहौर स्थित घर पर भी की थी और बताया था कि असल में उन्होंने इस गिरफ्तारी में एक अहम भूमिका निभाई थी।


हैरान करने वाली बात तो ये है कि जब डैनियल पर्ल केस की सुनवाई शुरू हुई तो पुलिस ने अदालत में पेश किए गए चालान में कहा कि उमर सईद शेख को 13 फरवरी 2002 को कराची एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया जबकि उमर शेख ने अपने कुबूलनामा में बताया था कि 6 फरवरी 2002 को आत्मसमर्पण किया और उसे 12 फरवरी को पीआईए की फ्लाइट से कराची लाया गया था।


शेख की तरफ से अदालत में अपने बचाव के लिए दो गवाह पेश किए गए एक उनके अपने पिता और दूसरे उनके मामा डिस्ट्रिक्ट सेशन जज शेख अब्दुर्रउफ थे।


पुलिस ने झूठ क्यों बोला?
दोनों ने उनके बयान की गवाही दी लेकिन इसके अलावा उमर शेख के वकील ए शेख एडवोकेट की तरफ से अदालत में उमर शेख की गिरफ्तारी पर अखबारों में छपी खबरों की कटिंग और पीटीवी की फुटेज भी पेश की गई। जिस पर अभियोजन कुछ न कह सका।


पुलिस ने इस अहम केस में अहमद उमर शेख की गिरफ्तारी के बारे में झूठ क्यों बोला? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। क्राइम मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि अभियोजन पक्ष की ये चाल ट्रायल कोर्ट में तो काम कर गई लेकिन जब इसे हाई कोर्ट की कसौटी पर परखा गया तो प्रॉसिक्यूशन का ये दांव, जिसे जुआ भी कहा जा सकता है चल नहीं सका।


अभियोजन पक्ष ने ये मुकदमा जिस तरह पेश किया उसमें ऊपर बताये गए पॉइंट्स के अलावा भी कई झोल मौजूद हैं जिन्हें सामने लाने के लिए अभियुक्तों के वकील को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।


अपहरण की साजिश
अभियोजन पक्ष के अनुसार हत्या की साजिश 11 जनवरी 2002 को अकबर होटल रावलपिंडी में की गई।


लेकिन उनके वकील ये साबित नहीं कर सके कि इस मुकदमे के दूसरे अभियुक्त फहद सलीम और सैय्यद साकिब सलमान भी उस समय उमर शेख के साथ रावलपिंडी के होटल में मौजूद थे और न ही ये साबित कर सके कि ये साजिश कराची में तैयार की गई जिसमें ये दोनों अभियुक्त भी मौजूद हो सकते।


इस तरह अभियोजन पक्ष की तरफ से उमर शेख के साथ दूसरे दो अभियुक्त यानी फहद सलीम और साकिब सलमान की होटल में ग़ैर-मौजूदगी ने इस बात को कमजोर कर दिया कि फिरौती के लिए अपहरण और हत्या की साजिश इन तीनों ने उस होटल में मिलकर की थी।


इसके बाद उमर शेख डैनियल पर्ल को फोन करते हैं और उन्हें कराची बुलाया जाता है। फोन पर 23 जनवरी 2002 को डैनियल पर्ल सीपीएलसी के अधिकारी यूसुफ जमील से मिलते हैं। यूसुफ जमील ने गवाही दी है कि उनके सामने पर्ल को किसी का फोन आया जिसे पर्ल ने कहा कि मैं आपके दफ्तर के पास हूँ मुझे याद है कि मुझे आपसे मिलना है।
उमर शेख का ग़लत फोन नंबर?
पर्ल यूसुफ जमील के दफ्तर से निकलते हैं और बशीर की तरफ जाते हैं। यहां बशीर वो व्यक्ति हैं जिनका असली नाम उमर अहमद शेख के तौर पर बाद में सामने आता है। यूसुफ जमील से मुलाकात के बाद डैनियल पर्ल को नासिर अब्बासी नामी टैक्सी ड्राइवर ने मेट्रोपोल होटल उतारा और यही वो क्षण था कि जब अमेरिकी पत्रकार को आखिरी बार जिंदा हालत में देखा गया।


टैक्सी ड्राइवर के अनुसार जैसे ही उसकी टैक्सी रुकी उसके सामने एक सफेद रंग की कोरोला गाड़ी आई जिसमें से एक व्यक्ति अमेरिकी पत्रकार से मिला और वो चले गए।


अदालत में अभियोजन पक्ष की तरफ से डैनियल पर्ल को मिलने वाली कॉल डिटेल और फोन नंबर भी पेश किया गया जिससे साबित हुआ कि ये फोन नंबर अहमद उमर शेख का नहीं बल्कि मिस्टर सिद्दीकी नामी के किसी व्यक्ति का है। यानी ये बात भी ग़लत निकली।


अभियुक्तों के कुबूलनामे
विशेषज्ञों के अनुसार अदालत में कमजोर पैरवी की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि डैनियल पर्ल हत्या मामले में फहद सलीम अहमद और सैय्यद सलमान साकिब, दो ऐसे कजिन अभियुक्त थे कि जिनके कबूलनामे पर अभियोजन पक्ष या पुलिस के केस का पूरा दारोमदार था।


दोनों पर आरोप था कि उन्होंने डैनियल पर्ल के अपहरण के बाद उमर शेख के कहने पर ई-मेल के जरिए पर्ल की पत्नी समेत दूसरे लोगों को अमेरिकी पत्रकार के अपहरण की तस्वीरों के साथ सूचना दी और फिर 30 जनवरी 2002 को आखिरी ई-मेल के जरिए पर्ल की रिहाई के बदले उस समय पाकिस्तान से गिरफ्तार किए गए अफग़ानिस्तान के राजदूत मुल्ला अब्दुस्सलीम जईफ की रिहाई, पाकिस्तान को एफ-16 फाइटर प्लेन्स की उपलब्धता और और क्यूबा में कैद मुस्लिम कैदियों की रिहाई आदि की मांग रखी।


ये मांगे 24 घंटों में पूरी न करने पर डैनियल पर्ल की हत्या की धमकी दी गई। इन अभियुक्तों की ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए कुबूलनामों के अनुसार अंग्रेजी और उर्दू भाषा में हाथ से लिखी चिट्ठी जिसमें रिहाई की मांगे लिखी हुई थी, उन्हें उमर शेख ने दी थी।
पूरे केस का सुराग
असल में आखिरी ई-मेल फहद सलीम ने अपने एक जानने वाले के घर से किया था। उमर शेख ने दोनों को कड़ी चेतावनी दी थी कि कोई भी अपने घर से ई-मेल नहीं करेगा। फहद सलीम की तरफ से अपने जानने वाले के घर से किए गए ई-मेल से ही पूरे केस का सुराग़ लगा और उस समय अभियुक्त एक-एक करके गिरफ्तार हुए।


दोनों अभियुक्तों के कूबुलनामे ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट इरम जहांगीर ने रिकॉर्ड किए थे और इन बयानों का स्वैच्छिक न होने के बारे में एक स्पष्ट नोट भी लिखा गया था। यही वो नोट था जो दोनों अभियुक्तों के कूबुलनामे को शक के दायरे में लाया। कानून के अनुसार मजिस्ट्रेट के सामने स्वेच्छा से दिए गए बयान की अहमियत होती है।


कानून के अनुसार ऐसे बयान स्वैच्छिक रूप से बिना किसी दबाव के रिकॉर्ड कराए जाएं इन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। मगर हैरानी की बात ये है कि बयान रिकॉर्ड करने वाली ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने खुद ही स्वीकार किया कि वो बयान स्वेच्छा से रिकॉर्ड नहीं हुए? ऐसा क्यों किया गया?


अगर ये उनकी पूरी तरह से ईमानदारी के साथ राय थी कि अभियुक्तों के बयान स्वेच्छा से नहीं तो पुलिस ने मजिस्ट्रेट के सामने लिए गए ऐसे कुबूलनामों पर निर्भरता क्यों दिखाई कि जिसमें साफ तौर पर मजिस्ट्रेट ने बयानों के स्वेच्छा से न होने का नोट लिखा हो?


हैंड राइटिंग एक्सपर्ट के पास सिंधी लिट्रेचर की डिग्री
अभियोजन पक्ष की नाकामी का एक और सबूत अदालत में ग़ुलाम अकबर नामी हैंड राइटिंग एक्सपर्ट को पेश करना था कि जिसके पास हैंड राइटिंग एक्सपर्ट के बजाए सिंधी लिट्रेचर की डिग्री थी। ग़ुलाम अकबर वो अहम व्यक्ति थे जिन्होंने डैनियल पर्ल की फिरौती के लिए हाथ से लिखी दो चिट्ठियों पर अपनी राय दी थी।


अंग्रेजी में लिखी राइटिंग अहमद उमर शेख की थी जबकि उर्दू में लिखी राइटिंग आदिल नामी व्यक्ति की थी। ये वो चिट्ठियां थी जो कथित तौर पर शेख ने फहद सलीम और सलमान साकिब को दी थी जिनके जरिए उन्होंने दुनिया को पर्ल के अपहरण और बाद में रिहाई के बदले फिरौती की मांग की सूचना दी।


लेकिन अहमद उमर शेख के वकील महमूद अहमद शेख ने हैंड राइटिंग एक्सपर्ट से संबंधित विभाग में उसकी काबिलियत के सवाल जवाब में साबित कर दिया कि उनकी राय पर भरोसा नहीं किया जा सकता।


इस तरह पुलिस ने ऐसे हैंड राइटिंग विशेषज्ञ पर निर्भर हो कर, जिसके पास उस फील्ड की डिग्री भी नहीं थी, केस को बर्बाद करने में कोई कसर नही छोड़ी।


अभियुक्तों के इस्तेमाल के कंप्यूटर में पुलिस ने छेड़छाड़ की
सलमान साकिब और फहद सलीम के मामले को और ग़ैर से देखें तो पता चलता है कि जिस लैपटॉप से इन लोगों की तरफ से डैनियल पर्ल के अपहरण की सूचना दी गई थी।


असल में ये लैपटॉप 2 फरवरी को इन अभियुक्तों की गिरफ्तारी के मौके पर बरामद किया गया था मगर उसकी बरामदगी के बारे में भी अभियोजन पक्ष ने अपने ही बयानों में विरोधाभास पैदा किए।


पुलिस का कहना था कि अभियुक्तों से लैपटॉप 11 और 12 फरवरी की आधी रात को बरामद किया गया है जबकि अदालत में पेश किए गए अमेरिकी एफबीआई के कंप्यूटर फॉरेंसिक विशेषज्ञ और गवाह रोनाल्ड जोसेफ के अनुसार उसे पाकिस्तान आने से दो दिन पहले यानी 29 जनवरी 2002 को बताया गया था कि उनको पाकिस्तान में एक लैपटॉप की जाँच करनी है।


अमेरिकी फॉरेंसिक विशेषज्ञ को 4 फरवरी 2002 को पाकिस्तान पहुंचना था और उसी शाम उन्हें कंप्यूटर दिया गया जिस पर वो रोजाना 4 से 6 घंटे काम करते थे। अदालत ने ये सवाल किया कि अगर अमेरिकी विशेषज्ञ को इस लैपटॉप के बारे में 29 जनवरी को सूचना दी गयी तो डैनियल पर्ल की फिरौती के लिए की गई आखिरी ई-मेल 30 जनवरी 2002 को कैसे आई?
सबूत भी बेकार हो गया...
मान लें कि अगर ये कंप्यूटर इसरा नोमानी का था जो डैनियल पर्ल की साथी थी जिनके कंप्यूटर पर अभियुक्तों की भेजी गई ई-मेल पढ़ी जा रही थी तो पुलिस ने उस कंप्यूटर की बरामदगी का भी कोई जिक्र नहीं किया है न सबूत दिया है।


अदालत ने साफ तौर पर कहा कि या तो कंप्यूटर की बरामदगी का समय ग़लत लिखा गया है या फिर एफबीआई के विशेषज्ञ का बयान ग़लत है। इस बुनियाद पर अदालत को शक हुआ कि असल में कंप्यूटर में छेड़छाड़ कर के अमेरिकी विशेषज्ञ को दिया गया।


अभियोजन पक्ष की इस ग़लती की वजह से डैनियल पर्ल हत्या के मामले में बरामद किया गया अहम सबूत भी अपनी उपयोगिता खो बैठा और अदालत ने साफ तौर पर कहा कि ऐसे कंप्यूटर के बारे में तैयार की गई फॉरेंसिक रिपोर्ट पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इस तरह ये सबूत भी बेकार हो गया।


न हत्या का औजार बरामद हुआ और न अभियोजन पक्ष डेनियल पर्ल की हत्या को साबित कर सकी।


18 साल बीत गए...
हैरान करने वाली बात तो ये है कि अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या को 18 साल बीत गए लेकिन आज तक हत्या का औजार बरामद नहीं हो सका।


अदालत में अमेरिकी पत्रकार के कत्ल के सबूत के तौर पर एकमात्र सबूत एक फिल्म पेश की गई थी और वो भी कराची पुलिस की बजाए अमेरिकी एफबीआई के अधिकारी जॉन मिलिगन की तरफ से पेश की गई और कहा गया कि ये फिल्म एक सोर्स के जरिए मिली है।


फिल्म में डैनियल पर्ल को कत्ल होते हुए तो दिखाया गया है लेकिन और कोई व्यक्ति नहीं। यानी अदालत में अभियोजन पक्ष अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या को साबित न कर सकी। न हत्या का औजार पेश हुआ और न लाश। या उनकी लाश के बरामद किए गए टुकड़ों की रिपोर्ट, जिससे ये पता चले कि वास्तव में डैनियल पर्ल का कत्ल हुआ था।


सिर्फ एक वीडियो पेश हुई जिसके बारे में अमेरिकी काउंसल जनरल ने क्रॉस इग्जामिनेशन में स्वीकार किया कि ये फिल्म किसी स्टूडियो में बनाई गई है। पुलिस कोई ऐसा सबूत न ला सकी जिसकी वजह से ये भी साबित हो कि उमर शेख उस फिल्म की रिकॉर्डिंग के दौरान भी मौके पर मौजूद था।


सिंध हाई कोर्ट में उमर शेख के वकील महमूद अहमद शेख की तरफ से केस की सुनवाई के दौरान 26 अदालती सन्दर्भ दिए गए जबकि अभियोजन पक्ष की तरफ से एडिशनल प्रॉसिक्यूटर जनरल सलीम अख्तर बोरीरो की तरफ से इस अहम केस में 10 के करीब सन्दर्भ दिए गए।


क्रिमनल केस में इन संदर्भों की भूमिका को बहुत अहम माना जाता है।