जिंदगी और मौत की जंग का मैदान बना यहां का कोविड वार्ड, डॉक्टर बोले- मरीज मौत से हार जाए, तो बेचैन हो जाता हूं

अहमदाबाद का ये सिर्फ कोविड-19 डेडिकेटिड सिविल हाॅस्पिटल का कोरोना वार्ड ही नहीं है, बल्कि यह कोरोना के खिलाफ जंग का मैदान है। यहां डॉक्टर दिन-रात वायरस का सामना कर मरीजों को बचाने के लिए जूझ रहे हैं, उन्हें बचा भी रहे हैं। पहली बात यहां तक आना किसी चक्रव्यूह को भेदने से कम चुनौतीपूर्ण नहीं था। सात दिन मैं लगातार जुटा रहा तब मंजूरी मिल सकी। डाॅक्टर कमलेश उपाध्याय के रेफरेंस से अधिकारियों ने मुझे पूरे नियम और सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए अपने जोखिम पर इस वार्ड में जाने की मंजूरी दी।


पहला दृश्य: रणनीति बनाने की मशक्कत जारी
दोपहर के 12 बज रहे थे जब मैं सिविल हाॅस्पिटल पहुंचा । पुराने ट्रॉमा सेंटर के पास सिक्योरिटी की अभेद किलेबंदी नजर आई। सामान्य व्यक्ति ‌को यहां से एक कदम भी आगे बढ़ने की इजाजत नहीं है। यहां से आगे बढ़ा तो हाॅस्पिटल के प्रवेश द्वार पर मुझे रोक कर पूछताछ की गई। इसके बाद मैं कंट्रोल रूम के पास पहुंचा जहां सभी अपने काम में जुटे थे। कोरोना पर फतह करने के लिए रणनीतियां बनाई जा रही थीं। एक तरफ स्टाफ सैम्पल कलेक्शन में जुटा था, तो दूसरी तरफ आरएमओ डाॅक्टर संजय कापडिया, डाॅक्टर संजय सोलंकी, हाॅस्पिटल इंचार्ज डाॅक्टर मैत्रेय गज्जर किसी गहरी चर्चा में डूबे हुए थे। बतौर विशेष अधिकारी धवल जानी भी मौजूद थे। उन्होंने मुझे कोविड हाॅस्पिटल के नोडल ऑफिसर डाॅ कार्तिकेय परमार के सुपुर्द कर दिया ।


एयर टाइट किट, 5वीं मिनट से ही छूटने लगा पसीना
बेहद जोखिम वाली इस जगह आने की मेरी उत्सुकता को जानकार सभी डॉक्टर हैरान थे। डाॅक्टर ने मुझे पीपीई किट पहनाई, विशेष प्रकार के गॉगल्स और हाथों में ग्लव्स पहनने को दिए। ये पूरी किट करीब-करीब एयरटाइट थी। इसे पहनने के बाद पांच ‌मिनट में ही पसीना छूटने लगा। डाॅक्टर ने मेरी स्थिति भांप ली- मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा कि हम लगातार बिना किसी ब्रेक के सात से आठ घंटे ये सूट पहन कर काम करते हैं। यह पीपीई सूट पहनने वाले कोरोना योद्धाओं को रोजाना 1.5 लीटर पसीना निकलता है। इतना पसीना निकलने से शरीर थक कर चूर हो जाता है। हालांकि, डाॅक्टर कार्तिकेय जिम्मेदारियों के अहसास से पूरी तरह जोश में थे। 


मरीज ने डॉक्टर से कहा- आप तो अल्लाह के बंदे हैं
डाॅक्टर परमार हर मरीज से इतनी आत्मीयता से बात कर रहे थे मानो वह परिवार का सदस्य हो। वार्ड में 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर पलंग लगे हुए थे। इन पर लगभग 30 मरीज थे। एक बुजुर्ग मरीज के पास जाकर डाॅक्टर ने उनकी तबियत के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा साहब आपके जैसे अल्लाह के बंदे जहां हैं वहां हमें या किसी को क्या तकलीफ हो सकती है? इस वार्ड में डाॅक्टर इस विश्वास का प्रतीक हैं कि जिंदगी मौत को हरा देगी।


आईसीयू में सिर्फ कांच से झांककर देख पाया


वार्ड के आगे आईसीयू है। डाॅक्टर ने कहा कि आईसीयू में बहुत अधिक संक्रमित और को-मोर्बिड मतलब हायपरटेंशन, हार्ट डिजीज वाले मरीज हैं। इनमें संक्रमण बहुत आगे बढ़ गया है। बहुत से वेंटीलेटर पर हैं ,यहां जाने पर इन्फेक्शन की आशंका बहुत ज्यादा है। यहां डॉक्टर भी बहुत जरूरी होने पर ही जाते हैं। डाॅ कार्तिकेय मेरे लिए लक्ष्मण रेखा खींच रहे थे। मैंने पार्टीशन कांच से अंदर की ओर देखा। अंदर एक-एक सांस के लिए भीषण संघर्ष चल रहा था। यहां हर दिन 1-2 मौत होती हैं।


लौटते समय पसीने में सराबोर हो गया
जब मैं लौट रहा था तब मेरा पूरा शरीर पसीने से भीग चुका था। गॉगल्स पर भी पसीने की भाप जम गई थी। दिमाग सुन्न सा हो गया था। डाॅ कार्तिकेय ने बताया कि वे हर दिन 150 से 200 मरीज देखते हैं । उन्होंने कहा कि को- मोर्बिड मरीज में संक्रमण बहुत ज्यादा फैलने की वजह से उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट के बाद भी बचाया नहीं जा सकता। जब इस तरह जिंदगी हारती है तो रात में खाना खाने की इच्छा ही नहीं होती । 


खबर लिखते समय उसी अस्पताल में 15 मरीजों के मौत की सूचना मिली


मैंने ऐसे मरीजों को हर सांस के लिए संघर्ष करते देखा है। इसलिए जब मैं यह खबर लिख रहा हूं उसी समय गुजरात की मुख्य स्वास्थ्य सचिव डाॅ जयंती रवि ने गुजरात का कोविड-19 बुलेटिन जारी करते हुए बताया कि अहमदाबाद में पिछले 24 घंटे में 19 मरीजों की मौत हो गई। इनमें से 15 उसी सिविल हाॅस्पिटल के आईसीयू में थे। जहां मैंने कुछ घंटे पहले ही मरीजों को एक-एक सांस के लिए संघर्ष करते देखा था।