लोग घरों में क्या बंद हुए पूरी दुनिया की आबो-हवा ही सुधर गई

दुनिया भर में कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या 20 लाख के करीब पहुंच चुकी है। एक लाख से ज्यादा लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। हजारों लोग मौत से जंग लड़ रहे हैं। भारत समेत विश्व के कई देश पूरी तरह लॉकडाउन हैं। दुनिया की एक तिहाई जनसंख्या अपने घरों में कैद है। इस लॉकडाउन से वैश्विक आर्थिक मंदी का संकट सामने आ खड़ा हुआ है। इस बीच एक सुकून भरी खबर भी है। लॉकडाउन की वजह से गाड़ियों की आवाजाही पर रोक और अधिकतर कारखानों के बंद होने के बाद पूरी दुनिया की आबो-हवा ही सुधर गई, दिल्ली समेत जिन महानगरों के AQI यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरे के निशान से ऊपर होते थे, वहां के आसमां अब गहरे नीले दिखने लगे हैं। बंद हो चुकीं चिड़ियों की चहचहाहट दोबारा सुनाई देने लगी। यानी यह लॉकडाउन इंसानों के लिए भले ही जी का जंजाल बन चुका हो, लेकिन पर्यावरण के लिए खुशखबरी लेकर आया है। भारत की राजधानी दिल्ली को दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित राजधानियों में गिना जाता रहा है। मगर बीते कुछ हफ्तों से इस शहर के मौसम में एक गजब की ताजगी महसूस की जा सकती है, जो जहरीली दमघोंटू हवा सीधे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती थी, अब साफ हो चुकी है। रात में सितारे नजर आने लगे हैं। 


दिवाली के आसपास हर साल NCR गैस चेंबर में तब्दील हो जाता था। देश के नीति-निर्माता समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्री इस समस्या पर चिंता जाहिर करते। समाधान किसी के पास नहीं होता। मगर कोरोना वायरस की वजह से लागू हुए इस लॉकडाउन ने सियासतदानों की आंखें खोलकर रखी दीं।


विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो 25 के सूचकांक से ऊपर का AQI असुरक्षित होता है, जो पिछले साल 900 तक पहुंच चुका था। अब राष्ट्रीय राजधानी में चलने वाली रिकॉर्ड 1 करोड़ 11 लाख गाड़ियों के थमने और कारखानों में ताला पड़ने की वजह से हवा की गुणवत्ता औसतन 50-70 के आसपास रिकॉर्ड होती है। बीते सप्ताह तीन दशकों में प्रदूषण अपने न्यूनतम स्तर तक गिर गया। सिर्फ दिल्ली ही नहीं, जिसने दशकों में सबसे साफ आसमान का अनुभव किया। यह भी अविश्वसनीय है कि पंजाब के जालंधर से 160 किलोमीटर दूर धौलाधार की चोटियां नजर आने लगीं। हिमाचल प्रदेश में स्थित धौलाधार की चोटियां पिछले 30 साल से नहीं देखी गई थी, शायद यह भी कोरोना वायरस के प्रकोप से थमे प्रदूषण की वजह से ही संभव हो पाया। पिछले साल की तुलना में पीएम 2.5 का स्तर देखा जाए तो यह भी 26 फीसदी तक कम हुआ है। वायु प्रदूषण पर काम करने वाली संस्था सफर ने भी इस संबंध में शोध पत्र जारी किया। साथ ही पीएम 10 की सांद्रता में भी तेजी से गिरावट आई है।
बैंकॉक और साओ पाउलो में ताजगी
विदेशों में भी लोग सुधरते पर्यावरण को लेकर उत्साहित हैं। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में भी अब साफ हवा महसूस की जा सकती है, लेकिन वहां के निवासियों का कहना है कि ताजा हवा महसूस करने के स्थान तेजी से गायब हो रहे हैं। खेल के मैदान, उद्यान सब बंद हैं। शहरी वातावरण में ऐसी कोई एकांत जगह  नहीं बची, जहां बैठकर खुली हवा में सांस ली जा सके। पहले लोग जब बाहर थे तो जहरीली हवा में सांस लेना मजबूरी थी। अब जब वायु की गुणवत्ता सुधरी तो लोग घरों में कैद होने को विवश हैं।
दक्षिण अमेरिका के सबसे अधिक आबादी वाले शहर साओ पाउलो में भी सड़कें वीरान हैं। आम दिनों में बेहद भीड़-भाड़ और व्यस्त रहने वाला ट्रैफिक थम सा गया है। कभी हजारों कारों से पटे रहने वाले रास्ते खाली हैं। शहरी गतिशीलता सलाहकार डैनियल गुथ ने कहा, 'हवा निश्चित रूप से बेहतर है। मैं साइकिल चालक और एक सभ्य नागरिक के रूप में वायु गुणवत्ता में सुधार महसूस कर रहा हूं'। इस संकट के खत्म होने पर हमें किन परिवहन विधियों को प्राथमिकता देनी चाहिए, इस पर विचार करना चाहिए।'
कोलंबिया की राजधानी बोगोटा पहाड़ पर बसा एक शहर है। यहां ट्रैफिक की समस्या इतनी आम थी कि अक्सर पूरे दिन के लिए चारपहियां वाहनों को बैन कर दिया जाता था, लेकिन 24 मार्च से शुरू हुए लॉकडाउन के बाद न सिर्फ वातावरण में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की मात्रा में कमी आई बल्कि वायु गुणवत्ता के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा है।
कोलंबिया की राजधानी बोगोटा पहाड़ पर बसा एक शहर है। यहां ट्रैफिक की समस्या इतनी आम थी कि अक्सर पूरे दिन के लिए चारपहियां वाहनों को बैन कर दिया जाता था, लेकिन 24 मार्च से शुरू हुए लॉकडाउन के बाद न सिर्फ वातावरण में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की मात्रा में कमी आई बल्कि वायु गुणवत्ता के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा है।
कोलंबिया की राजधानी बोगोटा पहाड़ पर बसा एक शहर है। यहां ट्रैफिक की समस्या इतनी आम थी कि अक्सर पूरे दिन के लिए चारपहियां वाहनों को बैन कर दिया जाता था, लेकिन 24 मार्च से शुरू हुए लॉकडाउन के बाद न सिर्फ वातावरण में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की मात्रा में कमी आई बल्कि वायु गुणवत्ता के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा है।
कैली, कोलंबिया का तीसरा सबसे बड़ा शहर और आमतौर पर एक भीड़भाड़ वाला महानगर है। यहां के वाशिंदे क्रिश्चियन कैमिलो विला ने कहा, 'आमतौर पर हमारे ऊपर जो प्रदूषण के बादल मंडराते थे, वह साफ हो गए। मगर अब चिंता यह है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी इस माहौल को कैसे बनाए रखा जाए। वास्तव में, पर्यावरणविदों के बीच डर यह है कि दुनिया के बड़े शहरों में घटे प्रदूषण को किस तरह बरकरार रखा जाए, क्योंकि जब उद्योग दोबारा शुरू होंगे, सड़के एकबार फिर गाड़ियों से भर जाएगी तो वातावरण पहले की ही तरह खराब हो जाएगा।
चीन की आबो-हवा फिर से दूषित
जिस चीन से कोरोना वायरस की शुरुआत हुई, वह देश अब दोबारा पटरी पर लौटने लगा है। उद्योग धीरे-धीरे दोबारा शुरू हो रहे हैं। बीजिंग, शंघाई की तरह ही अब दूसरे शहर भी अपनी दिनचर्या में लौट रहे हैं, जिसकी वजह से मार्च के शुरुआती हफ्तों में ही नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रदूषण के स्तर में वृद्धि शुरू हो गई है।


जनवरी के अंत में चीनी नव वर्ष की छुट्टी के बाद पहले चार हफ्तों के लिए, जब कोरोनवायरस का प्रकोप अपने सबसे खराब स्तर पर था, देश भर में प्रदूषण का स्तर 25% गिर चुका था, उस दौरान उपग्रह चित्रों ने प्रदूषण के स्तर में एक नाटकीय गिरावट दिखाई थी।


बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि, लॉकडाउन के उपायों से वर्ष की शुरुआत में उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की गिरावट आई थी और 337 शहरों में 'अच्छी गुणवत्ता की हवा' के अनुपात में 11.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। दूसरी ओर कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, न्यूयॉर्क में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर पिछले साल की तुलना में 50 प्रतिशत कम हो गया है। उत्तरी इटली में नाइट्रोजनऑक्साइड में अचानक गिरावट देखी गई।
द इकोनॉमिस्ट की माने तो, दुनियाभर में आया आर्थिक संकट स्वच्छ नजर आ रहे पर्यावरण को पहले से भी बदतर बना सकता है। 2008 की मंदी के बाद, जीवाश्म ईंधन की कम कीमतों ने भारत और चीन जैसे देशों को दोबारा अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने में बेहद मदद की थी, लेकिन उससे कार्बन उत्सर्जन पहले के मुकाबले काफी बढ़ गया था।


अतीत में जब-जब इस तरह की आर्थिक मंदी आई है, दुनियाभर में प्रदूषण का स्तर कम होने के बाद दोबारा बेहद तेजी से बढ़ा है। 1973 और 1979 का तेल संकट, USSR का पतन, और 1997 के एशियाई वित्तीय संकट कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो दोबारा बढ़ते प्रदूषण के दावों को मजबूती देते हैं।


विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस की वजह से खिला-खिला नजर आ रहा पर्यावरण तभी दोबारा कम खराब होगा, जब विभिन्न राष्ट्र अपनी आर्थिक हालत सुधारने के लिए कार्बन-सघन क्षेत्रों पर निर्भर रहने की बजाय नए जलवायु के अनुकूल उद्योगों में निवेश करेंगे।