अब कोरोना के साथ ‘जीवन’ जीना सीखें


जब ‘स्पर्श’ एक पाबंदी तथा जीवन को बनाए रखने वाली ‘सांस’ हर व्यक्ति के लिए जोखिम बन जाती है तब मानवता एक किनारे पर जीने को मजबूर हो जाती है। कोरोना के समय में जीना जीवन के लिए पहले जैसा नहीं है। वायरस ने जीवन को स्थिर कर दिया। जब तक कि इसकी वैक्सीन खोजी नहीं जाती तब तक हमें कोरोना के बाद के जीवन में कठिनाई देखने को मिलेगी। वायरस के लिए अब इसके लिए रोकने वाला बटन नहीं बल्कि हरेक को ‘रिसैट’ बटन दबाना होगा। हमारे दिमाग और रहने के तरीके को एक रिसैट बटन की जरूरत है। यह मुश्किल भी नहीं होना चाहिए। 


हाल ही में किए गए  कोरोना सर्वेक्षण से पता चला है कि 91 प्रतिशत अमरीकियों ने माना है कि वायरस ने उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को बदल कर रख दिया है जबकि 86 प्रतिशत लोगों ने वायरस की समाप्ति के लिए दुआ मांगी है। वहीं 77 प्रतिशत लोग रेस्तरां में खाना नहीं खाना चाहते और राष्ट्रपति चुनावों के दौरान 66 प्रतिशत लोग वोट देने के लिए लाइन में खड़े होना असहज समझेंगे। ये उस अदृश्य सूक्ष्म जीव का प्रभाव है जो मानवीय शरीर पर पूरे विश्व भर में अपना असर दिखा रहा है। 


25 मार्च से जब हमारे देश में 500 से भी कम कोरोना के केस थे तब 130 करोड़ लोगों ने अपने आपको घरों में बंद कर दिया। जब से आंकड़ा 17 मई को 1 लाख का हो गया तब लोगों के बीच में आजादी के लिए एक तड़प जागी। इसलिए लॉकडाऊन 4.0 पूरी तरह से पहले से अलग है। 


विशेषज्ञ तथा उच्च सरकारी अधिकारियों का कहना है कि कोरोना के खिलाफ युद्ध लम्बे समय तक लड़ा जाना है क्योंकि वैक्सीन ढूंढने के लिए काफी समय लग सकता है। इसलिए वायरस से निपटने के लिए जीवन के रिसैट बटन को दबाना जरूरी हो चला है। लोगों को अगले निर्देशों का इंतजार है जब वर्तमान लॉकडाऊन 31 मई को समाप्त होगा।


लॉकडाऊन के अगले संस्करण की रूपरेखा संक्रमण की अवस्था तथा लोगों के आचरण पर निर्भर करती है। इसलिए चौथे संस्करण के दौरान सामाजिक, आॢथक और राजनीति के ज्ञान क्षेत्र के नियमों को रिसैट करने की आवश्यकता है। 


सामाजिक जीवन 
जब दूसरों की उपस्थिति में होने के आराम को अनुपस्थिति के द्वारा प्रतिस्थापित करने के लिए मजबूर किया जाता है तो वह जीवन होता है। हमें वायरस के प्रकोप से बचने के लिए अपना दृष्टिकोण और व्यवहार बदलना होगा। हमें सामाजिक दूरी सुनिश्चित करनी होगी और एक सार्थक तरीके से एक-दूसरे से जुड़े रहने और समर्थन करने की आवश्यकता है।


कोरोना के बाद क्लास रूम घरों में बदल गए हैं। सैमीनार वैबीनार में बदल चुके हैं। एक डिजीटल लाईफ उभर कर सामने आई है। कोरोना के साथ नई आदतें जीवन में उपजी हैं। सच्चाई यह है कि हर कोई ऊब गया है और खुद को बदली आदतों के लिए समॢपत कर रहा है। दूरी बनाए रखना, मास्क पहनना और हाथों की नियमित सफाई एक प्रभावी उपाय है। 


आर्थिक चिंता
अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करते हुए लोगों के जीवन की रक्षा करना प्रमुख चुनौती बन गया। वैश्विक अर्थव्यवस्था महामंदी को झेल रही है। उत्पादन और अन्य आॢथक गतिविधियों के केंद्रों को अत्यंत सुरक्षा उपायों के बीच वापसी करनी होगी। 
कड़े प्रोटोकोल लगाए जाने चाहिएं और उनका पालन करना होगा। भागने से बेहतर इस समय के जीवन को जीना है।


वर्तमान समय में उत्पादन का स्तर बढ़ाना होगा।  वायरस के प्रकोप ने स्वास्थ्य देखभाल में निवेश को प्रोत्साहित करने की मांग को रेखांकित किया है। स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे में कई अपर्याप्त चीजें उजागर हुई हैं। अनिश्चितता के बीच बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर घर की ओर लौट रहे हैं। ऐसे प्रयास होने चाहिएं कि प्रवासी लोगों को आश्वासन देकर उन्हें फिर से स्थापित किया जाए। 


राजनीतिक 
वायरस के प्रकोप ने हमारे देश के सहकारी संघवाद को सबसे अच्छे रूप में प्रकट किया है। केंद्र और राज्य स्तर के नेतृत्व में एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समानियोजित किया है। 1.0 से 4.0 के लॉकडाऊन के दौरान इस भावना को सुनिश्चित करते हुए केंद्र और राज्य  सरकारें पहले से कहीं ज्यादा कोरोना वायरस से लड़ी हैं।