क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन, वेहिकल लोन में डिफॉल्ट के मामले बढ़ेंगे, लोगों के गांव चले जाने से बैंकर्स को नहीं मिल रहे हैं कर्जखोरों के पते

मुंबई. कोविड-19 के चलते अब भारतीय लेंडर्स के पास क्रेडिट कार्ड के बकाए, पर्सनल और वेहिकल लोन से संबंधित डिफॉल्ट के मामले तेजी से आने लगे हैं। यह मामले इसलिए तेजी से आ रहे हैं, क्योंकि उधार लेनेवाले लोग गांव चले गए हैं। बैंक अब उन्हें ट्रैक नहीं कर पा रहे हैं।


बैंकों की बैलेंसशीट में रिटेल लोन सबसे महत्वपूर्ण है


कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लगभग दो महीने से चले आ रहे लॉकडाउन ने भारत के रिटेल फाइनेंशियल क्षेत्र को असहाय कर दिया है। यह सेक्टर बैंकिंग उद्योग के लिए एक रीढ़ के रूप में काम करता है। लेकिन अब इसमें एनपीए आने का मतलब है कि बैंकिंग बैलेंसशीट में और निगेटिव आने लगेगा। भारतीय बैंकिंग पहले से ही 120 अरब डॉलर के बैड लोन से जूझ रहे हैं। असेट क्वालिटी के संदर्भ में 13 प्रमुख विश्व अर्थव्यवस्थाओं में भारत तीसरे स्थान पर है।


बैड लोन से प्राइवेट बैंक के मुनाफे पर होगा ज्यादा असर


विश्लेषकों का कहना है कि इस वित्त वर्ष में बैड लोन का प्रोविजन प्राइवेट बैंकों के मुनाफे कम कर सकते हैं। उधर सरकारी बैंकों को सर्वाइव करने के लिए अभी और अधिक सरकारी धन की आवश्यकता होगी। गैर क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत कर्ज का भुगतान पिछले कुछ हफ्तों में बढ़ा है। कई वरिष्ठ बैंकर्स और उद्योग के अंदरूनी सूत्र के अनुसार, पहले से ही बड़ी कंपनियों के एनपीए में वृध्दि देश को संकट से रिकवरी करने में मुश्किलें पैदा करेगी।


आईसीआईसीआई बैंक का दो तिहाई लोन रिटेल में 


प्राइवेट बैंक के रिटेल डिवीज़न में काम कर रहे एक बैंकर ने कहा, स्थिति इतनी खराब है कि भुगतान करने वाले लोग भी भुगतान नहीं कर रहे हैं। कुछ लोग अपने भुगतान में देरी कर रहे हैं। यह सब धीरे धीरे एक बड़ी समस्या में बदलेगा। भारत का दूसरा सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक आईसीआईसीआई बैंक का दो तिहाई लोन रिटेल का है। पिछले हफ्ते बैंक ने फाइनेंशियल रिजल्ट जारी किया। इसका लाभ 27.25 अरब रुपए रहा। यह विश्लेषक अनुमानों से कम है।


नतीजों के बाद आईसीआईसीआई बैंक के शेयर गिर गए। आरबीएल और इंडसइंड जैसे बैंकों को भी मुश्किल आ सकती हैं। क्योंकि कमजोर डिपॉजिट फ्रेंचाइजी उन्हें अधिक असुरक्षित बनाता है।


2015 के बाद रिटेल लोन सालाना 15 प्रतिशत बढ़ा


भारत की अर्थव्यवस्था में विस्तार और खपत बढ़ने के साथ ही सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों ने पिछले पांच-छह वर्षों में अपने रिटेल लेंडिंग में तेजी से वृद्धि की है। 2015 के बाद से, रिटेल लोन लगभग 15 प्रतिशत के वार्षिक औसत से बढ़ा है। यह कॉर्पोरेट लोन से दो गुना है। कोविड-19 से पहले रेगुलेटर ने बैंकों को अलर्ट कर दिया था लेकिन उन चेतावनियों को बैंकों ने नजरअंदाज कर दिया। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) इसमें ज्यादा आगे रहे।


एनबीएफसी के पास कुल कर्ज का 20 प्रतिशत हिस्सा


एनबीएफसी के पास भारत में कुल कर्ज का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा है। आम तौर पर ये इनफॉर्मल सेक्टर के लोगों को उधार देते हैं, जिन्हें बैंक से लोन मिलना मुश्किल लगता है। ऐसे बैंक वायरस की मार ज्यादा प्रभावित हुए हैं। रेटिंग एजेंसी एक्यूइट रेटिंग्स एंड रिसर्च में चीफ एनालिटिकल अधिकारी सुमन चौधरी ने कहा कि अप्रैल और मई में एनबीएफसी से लोन लेने वालों में से केवल पांचवें हिस्से के लोगों ने कर्ज चुकाया। उन्होंने कहा कि अगर आने वाले महीनों में आरबीआई द्वारा बैड लोन क्लासिफिकेशन के मानदंडों में ढील नहीं दी जाती है, तो एनबीएफसी में इस तरह के कर्ज अगले छह महीनों में दोगुने हो जाएंगे।


लोगों की नौकरियां जाने से डिफॉल्ट के केस बढ़ेंगे


लॉकडाउन ने भारत की अर्थव्यवस्था में ठहराव ला दिया है। विश्लेषकों तथा रेटिंग एजेंसियों के अनुसार मार्च में समाप्त वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था और कम होगी। रेवेन्यू कम होने के रूप में, कंपनियां लागत में कटौती कर रही हैं। इससे लोगों की नौकरी जाएगी। इसके परिणाम स्वरूप डिफॉल्ट के केस और बढ़ जाएंगे। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) का अनुमान है कि मार्च और अप्रैल के दौरान लगभग 11.4 करोड़ भारतीयों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी।


गांव चले गए लोगों का पता नहीं मिल रहा है


एक प्रमुख एनबीएफसी के एक वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा, "कई केस अब ट्रेस नहीं हो पा रहे हैं। यह बहुत चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। फर्म की बिक्री टीम के लोगों को लोन की रिकवरी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा जा रहा है। आरबीआई द्वारा मई के अंत तक अनुमति दिए गए कर्ज भुगतान पर रोक (मोरेटोरिम) के कारण कलेक्शन भी गिरा है। विश्लेषकों ने कहा कि अगर इसे नहीं बढ़ाया जाता है, तो बैड लोन अनुपात जल्दी बढ़ सकता है।


मार्च 2021 तक दोगुना हो सकता है एनपीए


रेटिंग एजेंसी केयर ने कहा कि 2018 में कुल बैंकिंग असेट्स के 9.5 प्रतिशत पर भारत का बैड लोन का अनुपात इटली और पुर्तगाल की तुलना में भी बदतर था। बैंकर्स को उम्मीद है कि मार्च 2021 तक अनुपात दोगुना होकर 18 से 20 प्रतिशत हो सकता है, जो लेंडर्स को रेड जोन में डाल देगा। सरकार पहले से ही बैड लोन की समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित सरकारी बैंकों में पिछले पांच वर्षों में 50 अरब डॉलर के करीब डाल चुकी है।